अजा एकादशी 2025 महत्व एवं पूजा विधि :
अजा एकादशी भाद्रपद मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी को प्रबोधिनी , जया , तथा कामिनी एकादशी से विख्यात है । इस दिन भगवान विष्णु जी की पूजा की जाती है और एकादशी कथा पढ़ने का भी महत्व है| रात्रि जागरण तथा व्रत रखने से सारे पाप नष्ट हो जाते हैं | यहीं वह व्रत है जिसे धारण करने से राजा हरिश्चंद ने अपना मान सम्मान , अपना खोया हुआ सबकुछ वापस पाया था | इस व्रत को करने से दरिद्रता दूर होती है और संतान पर आया हुआ कष्ट दूर होता है |
अजा एकादशी की पूजा विधि :
- यदि आप एकादशी का व्रत रख रहे है तो एकादशी से एक दिन पहले सूर्यास्त के बाद भोजन न करें |
- एकादशी के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठे |
- जल्दी उठकर स्नान आदि करके व्रत करने का संकल्प लें और सूर्यदेव को जल अर्पित करें |
- इस दिन भगवान विष्णु की पूजा कर उन्हें प्रसन्न किया जाता है |
- इस दिन चौकी पर पीला वस्त्र बिछाएं और भगवान विष्णु और माँ लक्ष्मी की प्रतिमा विराजमान करें |
- उनका अभिषेक करें और घी का दीपक जलाएं उन्हें फूल , फल अप्रीत करें |
- अब भगवान विष्णु के सामने संबंधित मंत्रों (“ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः”) का जाप कर भगवान को केले या फलाहार और तुलसी का भोग लगाए |
- इस व्रत वाले दिन गरीब ब्राह्मण को दान देना परम श्रेयस्कर है ।
अजा एकादशी 2025 पारण :
19 अगस्त 2025, मंगलवार को अजा एकादशी
20 अगस्त को पारण का समय – प्रातः 05:52 बजे से प्रातः 08:28 बजे तक
पारण दिवस द्वादशी समाप्ति क्षण – दोपहर 01:56 बजे
एकादशी तिथि प्रारंभ – 18 अगस्त 2025 को शाम 05:20 बजे से
एकादशी तिथि समाप्त – 19 अगस्त 2025 को अपराह्न 03:30 बजे
जब व्रत पूरा हो जाता है और व्रत को तोड़ा जाता है उसे पारण कहते है । एकादशी व्रत के अगले दिन सूर्योदय के बाद एकादशी का पारण किया जाता है। पारण द्वादशी तिथि के भीतर करना आवश्यक होता है ,जब तक कि द्वादशी सूर्योदय से पहले समाप्त न हो जाए। द्वादशी के भीतर पारण न करना अपराध के समान माना जाता है |
हरि वासर के दौरान पारण नहीं करना चाहिए। व्रत तोड़ने से पहले हरि वासर खत्म होने का इंतजार करना चाहिए। हरि वासर द्वादशी तिथि की पहली एक चौथाई अवधि है। संस्कृत की प्राचीन भाषा में, हरि वासर को भगवान विष्णु से संबंधित दिव्य समय के रूप में प्रतिध्वनित किया जाता है (हरि: विष्णु का एक विशेषण; वासर: ब्रह्मांडीय घंटा)। एकादशी तिथि के दौरान, पवित्र हरि वासर प्रकट होता है, जो भगवान विष्णु की पूजा के लिए समर्पित है।
व्रत तोड़ने का सबसे पसंदीदा समय प्रातःकाल है। मध्याह्न के दौरान व्रत तोड़ने से बचना चाहिए। यदि किसी कारणवश कोई व्यक्ति प्रातःकाल में व्रत नहीं खोल पाता है तो उसे मध्याह्न के बाद व्रत करना चाहिए।
कभी-कभी लगातार दो दिनों तक एकादशी व्रत रखने का सुझाव दिया जाता है। यह सलाह दी जाती है कि समर्था को परिवार सहित केवल पहले दिन उपवास करना चाहिए। जब स्मार्थ के लिए वैकल्पिक एकादशियों के उपवास का सुझाव दिया जाता है तो यह वैष्णव एकादशियों के उपवास के दिन के साथ मेल खाता है।
भगवान विष्णु के प्रेम और स्नेह की तलाश करने वाले कट्टर भक्तों को दोनों दिन एकादशियों का उपवास करने का सुझाव दिया जाता है |

अजा एकादशी व्रत कथा :
पुराणों में वर्णन आता है कि एक बार सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र ने स्वप्न में ऋषि विश्वामित्र को अपना राज्य दान कर दिया । ऋषि ने उनसे दक्षिणा की 500 स्वर्ण मुद्राएं और मांगी । दक्षिणा चुकाने के लिए राजा को अपनी पत्नी एवं पुत्र तथा स्वयं को बेचना पड़ा । राजा हरिश्चंद्र को एक डोम ने खरीदा था । डोम नीरज हरिश्चंद्र को शमशान में नियुक्त करके मृत्यको के संबंधियों से कर लेकर शवदाह करने का कार्य सौपा था । उनको जब यह कार्य करते हुए कई वर्ष बीत गए तो
एक दिन अचानक से उनकी भेंट गौतम ऋषि से हो गई ।
राजा ने उनसे अपने ऊपर बीती सब बातें बताएं , तो मुनि ने उन्हें इसी अजा एकादशी का व्रत करने की सलाह दी । राजा ने यह व्रत करना आरंभ कर दिया । इसी बीच उनके पुत्र रोहिताश का सर्प के डसने से स्वर्गवास हो गया ।
उसकी माता अपने पुत्र को अंतिम संस्कार हेतु शमशान पर लाई तो राजा हरिश्चंद्र ने उससे शमशान का कर मांगा । उसके पास शमशान का कर चुकाने के लिए कुछ भी नहीं था । उसने चुनरी का आधा भाग देकर शमशान का कर चुकाया । तत्काल आकाश में बिजली चमकी और प्रभु प्रकट होकर बोले – ” महाराज ! तुमने सत्य को जीवन में धारण करके उच्चतम आदर्श प्रस्तुत किया है । तुम्हारी कर्तव्य निष्ठा धन्य है । तुम इतिहास में सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र के नाम से अमर रहोगे । ” भगवत कृपा से रोहित जीवित हो गया । तीनों प्राणी चिरकाल तक सुख भोगकर अंत में स्वर्ग को चले गए ।
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