आमलकी एकादशी 2025 : Let us take special blessings from Lord Vishnu on this Amalki Ekadashi !

आमलकी एकादशी पूजा विधि एवं महत्व :

आमलकी एकादशी का व्रत फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को किया जाता है । इसे हम फाल्गुनी एकादशी भी कहते है | आँवले के वृक्ष में भगवान का निवास होने के कारण इसका पूजन किया जाता है । एकादशी को आँवले के वृक्ष की पूजा कर भगवान श्री हरी विष्णु को आँवले अर्पित करने से समस्त सांसारिक सुख प्राप्त होते है |

शास्त्रों के अनुसार भगवान विष्णु ने सृष्टि की रचना के लिए ब्रह्मा जी को उतपन्न किया और उसी समय आँवले वृक्ष की भी उत्पत्ति हुई | आँवले वृक्ष के प्रत्येक अंग में देवता समाय हुए है , इस दिन आँवले के वृक्ष लगाने से महान पुण्य फल प्राप्त होते है | इस दिन राजस्थान के प्रसिद्ध तीर्थ खाटू श्याम जी में बहुत बड़ा मेला भी लगता है |

आमलकी एकादशी पारण :

10 मार्च 2025, सोमवार को आमलकी एकादशी
11 मार्च को पारण का समय- 06:33 से 08:13 तक
पारण दिवस द्वादशी समाप्ति क्षण – 08:13 बजे

एकादशी तिथि प्रारम्भ – 09 मार्च 2025 को प्रातः 07:45 बजे से
एकादशी तिथि समाप्त – 10 मार्च 2025 को 07:45 बजे

जब व्रत पूरा हो जाता है और व्रत को तोड़ा जाता है उसे पारण कहते है । एकादशी व्रत के अगले दिन सूर्योदय के बाद एकादशी का पारण किया जाता है। पारण द्वादशी तिथि के भीतर करना आवश्यक होता है ,जब तक कि द्वादशी सूर्योदय से पहले समाप्त न हो जाए। द्वादशी के भीतर पारण न करना अपराध के समान माना जाता है |

हरि वासर के दौरान पारण नहीं करना चाहिए। व्रत तोड़ने से पहले हरि वासर खत्म होने का इंतजार करना चाहिए। हरि वासर द्वादशी तिथि की पहली एक चौथाई अवधि है। संस्कृत की प्राचीन भाषा में, हरि वासर को भगवान विष्णु से संबंधित दिव्य समय के रूप में प्रतिध्वनित किया जाता है (हरि: विष्णु का एक विशेषण; वासर: ब्रह्मांडीय घंटा)। एकादशी तिथि के दौरान, पवित्र हरि वासर प्रकट होता है, जो भगवान विष्णु की पूजा के लिए समर्पित है।
व्रत तोड़ने का सबसे पसंदीदा समय प्रातःकाल है। मध्याह्न के दौरान व्रत तोड़ने से बचना चाहिए। यदि किसी कारणवश कोई व्यक्ति प्रातःकाल में व्रत नहीं खोल पाता है तो उसे मध्याह्न के बाद व्रत करना चाहिए।

कभी-कभी लगातार दो दिनों तक एकादशी व्रत रखने का सुझाव दिया जाता है। यह सलाह दी जाती है कि समर्था को परिवार सहित केवल पहले दिन उपवास करना चाहिए। जब स्मार्थ के लिए वैकल्पिक एकादशियों के उपवास का सुझाव दिया जाता है तो यह वैष्णव एकादशियों के उपवास के दिन के साथ मेल खाता है।

भगवान विष्णु के प्रेम और स्नेह की तलाश करने वाले कट्टर भक्तों को दोनों दिन एकादशियों का उपवास करने का सुझाव दिया जाता है |

आमलकी एकादशी

आमलकी एकादशी व्रत कथा :

प्राचीन काल में भारत देश में चित्रसेन नामक राजा राज्य करते थे । जिनके राज्य में एकादशी व्रत का बहुत महत्व था । समस्त राजा एकादशी व्रत को किया करते थे । एक दिन वह राजा जंगल में शिकार खेलते-खेलते काफी दूर निकल गए , तभी कुछ जंगली जातियों ने उन्हें आकर घेर लिया । मल्लेछों ने राजा के ऊपर अस्त्र – शस्त्रों का कठिन प्रहार किया । मगर उन्हें कोई कष्ट नहीं हुआ । यह देखकर वह सभी आश्चर्य चकित रह गए ।

जब उन जंगली जातियों की संख्या देखते ही देखे बहुत बढ़ गई तो राजा संज्ञा हीन होकर पृथ्वी पर धराशायी हो गए । उसी समय उनके शरीर से एक दिव्य शक्ति प्रकट हुई जो उन समस्त राक्षसों को मारकर अदृश्य हो गई ।

जब राजा की चेतना लौटी तो उन्होंने देखा की समस्त मल्लेछ मरे पड़े हैं । अब वे इस उधेड़बुन में पड़ गए कि इन्हें किसने मारा ? तभी आकाशवाणी से यह सुनाई पड़ा – ” हे राजन ! यह समस्त आक्रामक तुम्हारे पिछले जन्म की आमल एकादशी के व्रत के प्रभाव से मर गए हैं । ” यह सुनकर राजा बहुत प्रसन्न हुआ तथा समस्त राज्य में इस एकादशी के महत्व को कह सुनाया । मल्लेछों के विनाश से समस्त प्रजा सुख शांति से रहने लगी ।

 

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