परिवर्तनी एकादशी 2025: Know about Significance , Pooja time /Vidhi and powerful effects of Parvatini Ekadashi !

परिवर्तनी एकादशी 2025 महत्व एवं पूजा विधि :

परिवर्तनी एकादशी भादपद्र मास की शुक्ल पक्ष तिथि को मनाई जाती है | इस एकादशी को परस्वा और पद्मा एकादशी भी कहते हैं । यह श्री लक्ष्मी जी का परम लाभकारी व्रत है । इस दिन भगवान विष्णु क्षीरसागर में शय्या पर चयन करते हुए करवट बदलते हैं और प्रसन्न मुद्रा में रहते है | इसलिए इसे करवटनी एकादशी भी कहा जाता है ।

मंदिरो में इस दिन भगवान विष्णु की प्रतिमा या शालिग्राम की पूजन के बाद पालकी में बैठकर शोभा यात्रा निकाली जाती है |
इस दिन भगवान विष्णु के साथ-साथ लक्ष्मी पूजा करना श्रेष्ठ है , क्योंकि देवताओं ने अपना पुनः राज्य को पाने के लिए मां लक्ष्मी का पूजन इस दिन किया था ।

पूजन कर एकादशी व्रत कथा अवश्य पढ़े |

परिवर्तनी एकादशी की पूजा विधि :

  • यदि आप एकादशी का व्रत रख रहे है तो एकादशी से एक दिन पहले सूर्यास्त के बाद भोजन न करें |
  • एकादशी के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठे |
  • जल्दी उठकर स्नान आदि करके व्रत करने का संकल्प लें और सूर्यदेव को जल अर्पित करें |
  • इस दिन भगवान विष्णु के बामन अवतार की पूजा कर उन्हें प्रसन्न किया जाता है |
  • इस दिन चौकी पर पीला वस्त्र बिछाएं और भगवान विष्णु और माँ लक्ष्मी की प्रतिमा विराजमान करें |
  • उनका अभिषेक करें और घी का दीपक जलाएं उन्हें फूल , फल अप्रीत करें |
  • अब भगवान विष्णु के सामने संबंधित मंत्रों (“ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः”) का जाप कर भगवान को केले या फलाहार और तुलसी का भोग लगाए |
  • इस व्रत वाले दिन गरीब ब्राह्मण को दान देना परम श्रेयस्कर है ।

परिवर्तनी एकादशी 2025 पारण :

बुधवार, 3 सितंबर 2025 को पार्श्व एकादशी
4 सितंबर को पारण का समय- दोपहर 01:35 बजे से शाम 04:05 बजे तक
पारण दिवस पर हरि वासर समाप्ति क्षण – सुबह 10:15 बजे
एकादशी तिथि प्रारंभ – 03 सितंबर 2025 को प्रातः 03:52 बजे से
एकादशी तिथि समाप्त – 04 सितंबर 2025 को प्रातः 04:20 बजे

जब व्रत पूरा हो जाता है और व्रत को तोड़ा जाता है उसे पारण कहते है । एकादशी व्रत के अगले दिन सूर्योदय के बाद एकादशी का पारण किया जाता है। पारण द्वादशी तिथि के भीतर करना आवश्यक होता है ,जब तक कि द्वादशी सूर्योदय से पहले समाप्त न हो जाए। द्वादशी के भीतर पारण न करना अपराध के समान माना जाता है |

हरि वासर के दौरान पारण नहीं करना चाहिए। व्रत तोड़ने से पहले हरि वासर खत्म होने का इंतजार करना चाहिए। हरि वासर द्वादशी तिथि की पहली एक चौथाई अवधि है। संस्कृत की प्राचीन भाषा में, हरि वासर को भगवान विष्णु से संबंधित दिव्य समय के रूप में प्रतिध्वनित किया जाता है (हरि: विष्णु का एक विशेषण; वासर: ब्रह्मांडीय घंटा)। एकादशी तिथि के दौरान, पवित्र हरि वासर प्रकट होता है, जो भगवान विष्णु की पूजा के लिए समर्पित है।
व्रत तोड़ने का सबसे पसंदीदा समय प्रातःकाल है। मध्याह्न के दौरान व्रत तोड़ने से बचना चाहिए। यदि किसी कारणवश कोई व्यक्ति प्रातःकाल में व्रत नहीं खोल पाता है तो उसे मध्याह्न के बाद व्रत करना चाहिए।

कभी-कभी लगातार दो दिनों तक एकादशी व्रत रखने का सुझाव दिया जाता है। यह सलाह दी जाती है कि समर्था को परिवार सहित केवल पहले दिन उपवास करना चाहिए। जब स्मार्थ के लिए वैकल्पिक एकादशियों के उपवास का सुझाव दिया जाता है तो यह वैष्णव एकादशियों के उपवास के दिन के साथ मेल खाता है।

भगवान विष्णु के प्रेम और स्नेह की तलाश करने वाले कट्टर भक्तों को दोनों दिन एकादशियों का उपवास करने का सुझाव दिया जाता है |

परिवर्तनी एकादशी
परिवर्तनी एकादशी व्रत कथा :

त्रेता युग में प्रहलाद का पौत्र राजा बलि राज्य करता था । वह ब्राह्मणों का सेवक तथा भगवान विष्णु का भक्त था और इंद्र आदि देवताओं का शत्रु था । उसने अपने भुजबल से देवताओं पर विजय प्राप्त की और उन्हें स्वर्ग से निकाल दिया । देवताओं को दुखी देखकर भगवान ने बामन अंगुल का शरीर धारण किया और बली के द्वार पर आकर कहा – ” मुझे तीन पग पृथ्वी का दान चाहिए । ”

बलि राजा बोले – ” तीन लोक दे सकता हूं । विराट रूप धारण करके नाप लो । ” वामन भगवान ने विराट रूप धारण करके दो पग में पूरी पृथ्वी को नाप लिया । तीसरा पग उठाया तो बलि ने सिर निचे धर दिया । प्रभु ने चरण धरकर दबाया तो बलि पातळ लोक में चला गया ।

जब भगवान चरण उठाने लगे तो बली ने हाथ पकड़ कर कहा – ” इन्हें मैं इस मंदिर में धरूंगा । ” भगवान बोले – ” यदि तुम बामन एकादशी का विधि सहित व्रत करो तो मैं तुम्हारे द्वार पर कुटिया बनाकर रहूंगा । ” अतः बलि राजा ने बामन एकादशी का व्रत विधि सहित किया । तब से भगवान की एक प्रतिमा द्वारपाल बनकर पाताल में और एक क्षीरसागर में निवास करने लगी ।

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