पापमोचिनी एकादशी महत्व एवं पूजा विधि :
पापमोचिनी एकादशी का व्रत चैत्र मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी को किया जाता है । कहा जाता है की पापमोचिनी एकादशी होली और चैत्र नवरात्रि के मध्य में आती है | इस दिन भगवान विष्णु को अर्घ्यदान आदि देकर षोड़शोपचार पूजा करनी चाहिए । पापमोचिनी का अर्थ है पाप को नष्ट करने वाली , पापमोचिनी एकादशी का व्रत रखने से भगवान विष्णु की विशेष कृपा प्राप्त होती है | इस व्रत के प्रभाव से पिशाचयोनि से भी मुक्ति मिलती है | इस व्रत को करने से तन-मन को शुद्धता प्राप्त होती है |
पापमोचिनी एकादशी की पूजा विधि :
1. यदि आप एकादशी का व्रत रख रहे है तो एकादशी से एक दिन पहले सूर्यास्त के बाद भोजन न करें |
2. एकादशी के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठे |
3. जल्दी उठकर स्नान आदि करके व्रत करने का संकल्प लें |
4. इस दिन भगवान विष्णु की पूजा कर उन्हें प्रसन्न किया जाता है |
5. ऐसे में आप भगवान विष्णु के सामने आसन बिछाकर बैठ जाएं और घी का दीपक जलाएं |
6. अब भगवान विष्णु के सामने संबंधित मंत्रों का जाप कर भगवान को केले और तुलसी का भोग लगाए |
पापमोचनी एकादशी पारण :
25 मार्च 2025, मंगलवार को पापमोचनी एकादशी
26 मार्च को पारण का समय- दोपहर 01:40 बजे से शाम 04:05 बजे तक
पारण दिवस पर हरि वासर समाप्ति क्षण – 09:12
एकादशी तिथि प्रारंभ – 25 मार्च 2025 को प्रातः 05:07 बजे से
एकादशी तिथि समाप्त – 26 मार्च 2025 को प्रातः 03:42 बजे
जब व्रत पूरा हो जाता है और व्रत को तोड़ा जाता है उसे पारण कहते है । एकादशी व्रत के अगले दिन सूर्योदय के बाद एकादशी का पारण किया जाता है। पारण द्वादशी तिथि के भीतर करना आवश्यक होता है ,जब तक कि द्वादशी सूर्योदय से पहले समाप्त न हो जाए। द्वादशी के भीतर पारण न करना अपराध के समान माना जाता है |
हरि वासर के दौरान पारण नहीं करना चाहिए। व्रत तोड़ने से पहले हरि वासर खत्म होने का इंतजार करना चाहिए। हरि वासर द्वादशी तिथि की पहली एक चौथाई अवधि है। संस्कृत की प्राचीन भाषा में, हरि वासर को भगवान विष्णु से संबंधित दिव्य समय के रूप में प्रतिध्वनित किया जाता है (हरि: विष्णु का एक विशेषण; वासर: ब्रह्मांडीय घंटा)। एकादशी तिथि के दौरान, पवित्र हरि वासर प्रकट होता है, जो भगवान विष्णु की पूजा के लिए समर्पित है।
व्रत तोड़ने का सबसे पसंदीदा समय प्रातःकाल है। मध्याह्न के दौरान व्रत तोड़ने से बचना चाहिए। यदि किसी कारणवश कोई व्यक्ति प्रातःकाल में व्रत नहीं खोल पाता है तो उसे मध्याह्न के बाद व्रत करना चाहिए।
कभी-कभी लगातार दो दिनों तक एकादशी व्रत रखने का सुझाव दिया जाता है। यह सलाह दी जाती है कि समर्था को परिवार सहित केवल पहले दिन उपवास करना चाहिए। जब स्मार्थ के लिए वैकल्पिक एकादशियों के उपवास का सुझाव दिया जाता है तो यह वैष्णव एकादशियों के उपवास के दिन के साथ मेल खाता है।
भगवान विष्णु के प्रेम और स्नेह की तलाश करने वाले कट्टर भक्तों को दोनों दिन एकादशियों का उपवास करने का सुझाव दिया जाता है |
पापमोचनी एकादशी व्रत कथा :
प्राचीन काल में चैत्ररथ नामक अति रमणीक वन था । इसी वन में देवराज इंद्र गंधर्व कन्याओं तथा देवताओं सहित स्वच्छंद विहार करते थे । मेधावी नामक ऋषि भी यही तपस्या करते थे । ऋषि शैवोपासक तथा अप्सराएं शिवद्रोहिनी अनंद दासी (अनुचरी ) थी । एक समय का प्रसंग है कि रतिनाथ कामदेव ने मेधावी मुनि की तपस्या भंग करने के लिए मंजूघोषा नामक अप्सरा को नृत्य गान करने के लिए उनके सम्मुख भेजा । युवावस्था वाले ऋषि अप्सरा के हाव- भाव , नृत्य , गीत तथा कटाक्षों पर काम काम से मोहित हो गए ।
रति – क्रीड़ा करते हुए 57 वर्ष बीत गए । मंजुघोषा ने एक दिन अपने स्थान पर जाने की आज्ञा माँगी । आज्ञा माँगने पर मुनि के कानों पर चींटी दौड़ी तथा उन्हें आत्मज्ञान हुआ । अपने को रसातल में पहुंचने का एकमात्र कारण अप्सरा मंजूघोषा को समझ कर मुनि ने उसे पिशाचिनी होने का श्राप दे दिया ।
शाप सुनकर मंजुघोषा ने वायु द्वारा प्रताड़ित कदली वृक्ष की भाँति काँपते हुए मुक्ति का उपाय पूछा । तब मुनि ने पापमोचनी एकादशी का व्रत रखने को कहा ।
वह विधि – विधान बताकर मेधावी ऋषि पिता च्वयन के आश्रम में गए । शाप की बात सुनकर च्वयन ऋषि ने पुत्र की घोर निंदा की तथा उन्हें चैत्र मास की पापमोचनी एकादशी का व्रत करने की आज्ञा दी । व्रत करने के प्रभाव से मंजुघोषा अप्सरा पिशाचिनी देह से मुक्त हो सुंदर देह धारण कर स्वर्गलोक को चली गयी ।
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