बुधवार व्रत – In 2025 Fasting on Wednesday will fulfill all your dreams wishes !

बुधवार व्रत धारण करने की विधि और महत्व :

बुधवार व्रत आप किसी भी माह की शुक्लपक्ष तिथि के प्रथम बुधवार से शुरू कर सकते है | बुधवार व्रत आप किसी भी माह की शुक्लपक्ष तिथि के प्रथम बुधवार से शुरू कर सकते है | यह व्रत 7 , 21 या 24 बुधवार तक रखें जाते है | बुधवार व्रत बुद्ध ग्रह को शांत करने के लिए विशेष फलदायी मन गया है | इस दिन कई जगह बुद्ध देव के साथ भगवान गणेश की पूजा का भी विधान है |

मान्यता अनुसार बुधवार का व्रत शुरू करने से पहले गणेश भगवान के साथ-साथ नवग्रहों की पूजा करनी चाहिए | बुधवार व्रत के अंत में शंकर जी की पूजा , धूप , बेल-पत्र आदि से करनी चाहिए । साथ ही बुधवार की कथा सुनकर आरती के बाद प्रसाद ग्रहण करना चाहिए ।

बुधवार व्रत की विधि इस प्रकार है :

  • बुधवार को सुबह स्नान आदि से निवृत्त होकर सबसे पहले भगवान गणेश जी की मूर्ति स्थापित करें ।
  • इस दिन आप हरे रंग के वस्त्र धारण करें और हरे आसन पर विराजमान होकर भगवान गणेश जी की फूल , धूप , दीप कपूर , चंदन आदि से पूजा अर्चना करें ।
  • बुधवार व्रत के दिन दूब यानी दूर्वा अर्पित करना शुभ माना जाता है । पूजा करने के बाद गणेश जी को प्रसाद अर्पित करें । प्रसाद में लड्डू या मूंग की दाल का हलवा अत्यंत शुभकारी माना जाता है ।

बुधवार व्रत

बुधवार व्रत कथा :

एक समय एक व्यक्ति अपने ससुराल गया वह ससुराल अपनी पत्नी को विदा करवाने के लिए गया था । वहां पर कुछ दिन रहने के बाद सास-ससुर से विदा करने के लिए कहा । तब सब ने कहा -” आज बुधवार का दिन है आज के दिन गमन नहीं करते । ” वह व्यक्ति किसी प्रकार ना माना और उसी दिन ही अपनी पत्नी को विदा कर अपने नगर के लिए चल पड़ा ।

राह में उसकी पत्नी को प्यास लगी तो उसने अपनी पति से कहा – ” मुझे बहुत जोर से प्यास लग रही है । ” तब वह व्यक्ति लोटा लेकर रथ से उतरकर जल लेने चला गया । जैसे ही वह व्यक्ति पानी लेकर अपनी पत्नी के निकट आया तो वह यह देखकर आश्चर्य चकित रह गया कि ठीक उसकी ही जैसी सूरत तथा वैसे ही वेश-भूषा में एक व्यक्ति उसकी पत्नी के निकट बैठा हुआ है ।

दूसरा व्यक्ति बोला – ” यह मेरी पत्नी है । मैं अभी-अभी ससुराल से विदा कर ला रहा हूं । ” वे दोनों व्यक्ति आपस में झगड़ने लगे । तभी राज्य के सिपाहियों ने आकर लोटे वाले व्यक्ति को पकड़ लिया और स्त्री से पूछा -” तुम्हारा पति कौन सा है ? ” तब पत्नी शांत रही और सोचने लगी यह दोनों तो बिल्कुल एक जैसे लग रहे हैं । उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह किसे अपना पति कहे ।

लोटे वाला व्यक्ति ईश्वर से प्रार्थना करता हुआ बोला – ” हे ईश्वर ! यह क्या लीला है कि सच्चा झूठा बन रहा है । ” तभी आकाशवाणी हुई – ” मूर्ख ! आज बुधवार के दिन तुझे गमन नहीं करना था तूने किसी की बात नहीं मानी यह सब लीला बुद्धदेव भगवान की है । ”

उस व्यक्ति ने बुद्धदेव से प्रार्थना की और अपनी गलती के लिए क्षमा मांगी । तब गुरुदेव जी अंतर्ध्यान हो गए । वह अपनी पत्नी को लेकर घर आया तथा बुधवार का व्रत वह दोनों पति-पत्नी नियम पूर्वक करने लगे । जो व्यक्ति इस कथा को पढ़ता व सुनता है उसको बुधवार के दिन यात्रा करने का कोई दोष नहीं लगता है । उसको सब प्रकार के सुखों की प्राप्ति होती है ।

बुधवार व्रत के फायदे :

  • शास्त्र के अनुसार बुध ग्रह को दयालु एवं उदार होने की बात कही जाती है । बुद्ध हमारी बुद्धि , रिद्धि , सिद्धि या ज्ञान को बढ़ाने में मदद करता है एवं व्यापार आदि में लाभ पहुंचता है ।
  • बुधवार का व्रत ग्रह शांति तथा सर्व सुखों की इच्छा रखने वालों के लिए अति शुभकारी है
  • बुधवार व्रत रखने वाले व्यक्ति को बुद्ध ग्रह से संबंधित दोष से मुक्ति मिलती है ।
  • मांगलिक कार्यों में किसी भी तरह की बाधा नहीं आती है ।
  • बुधवार व्रत करने से धन लाभ , उन्नति , व्यापर में तरक्की मिलती है ।

बुधवार व्रत में क्या खाएं :

  • व्रत के दौरान आप हरी सब्जियों , हरे फल , दूध – दही आदि का प्रयोग कर सकते है ।
  • बुधवार व्रत करने वाले व्यक्ति को एक समय भोजन ग्रहण करना चाहिए । भोजन में हरे रंग की वस्तु जैसे कि मूंग दाल का हलवा आदि का होना अत्यंत शुभ माना जाता है ।
  • बुधवार व्रत में आपको नमक और पान का सेवन नहीं करना चाहिए ।

बुधवार व्रत में करें 17 , 5 या 3 बार इस मंत्र का जाप तो होगी विशेष कृपा :

” ॐ ब्रां ब्रीं ब्रौं सः बुधाय नमः “॥

 

बुधवार व्रत की आरती:

आरती युगल किशोर की कीजै । तन मन धन न्योछावर कीजै ।।

गौर श्याम मुख निरखन लीजै । हरि का स्वरूप नयन भरि पीजै ।।

रवि शशि कोटी बदन की शोभा । ताहि निरिख मेरो मन लोभा ।।

ओढ़े नील पीत पट सारी । कुंजबिहारी गिरिवर धारी ।।

फूलन की सेज फूलन की माला । रत्न सिंघासन बैठे नंदलाला ।।

कंचनधार कपूर की बाती । हरी आये निर्मल भाई छाती ।।

श्री पुरुषोत्तम गिरवर धारी । आरती करे सकल बृज नारी ।।

नंद नंदन वृषभान किशोरी । परमानंद स्वामी अविचल जोरी ।।

 

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