योगिनी एकादशी 2025 महत्व एवं पूजा विधि :
योगिनी एकादशी का व्रत आषाढ़ माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी पर रखा जाता है | हिन्दू पंचांग के अनुसार योगिनी एकादशी महत्वपूर्ण एकादशियों में से एक है | इस दिन लक्ष्मीनारायण जी की पूजा की जाती है तथा कथा पढ़ी जाती है | | योगिनी एकादशी उपवास आपके जीवन में समृद्धी और आनंद प्रदान करता है | इसे करने वालो को 88,000 ब्राह्मणों को भोजन कराने के बराबर पुण्य प्राप्त होता है | इस एकादशी के प्रभाव से पीपल का वृक्ष काटने से उत्पन्न पाप नष्ट हो जाते हैं और अंत में स्वर्ग लोक की प्राप्ति होती है ।
योगिनी एकादशी की पूजा विधि :
- यदि आप एकादशी का व्रत रख रहे है तो एकादशी से एक दिन पहले सूर्यास्त के बाद भोजन न करें |
- एकादशी के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठे |
- जल्दी उठकर स्नान आदि करके व्रत करने का संकल्प लें |
- इस दिन भगवान विष्णु की पूजा कर उन्हें प्रसन्न किया जाता है |
- इस दिन व्रत रखकर भगवान नारायण की मूर्ति को स्थान पर आप भगवान विष्णु के सामने आसन बिछाकर बैठ जाएं और घी का दीपक जलाएं | पुष्प और धूप अर्पित करें |
- अब भगवान विष्णु के सामने संबंधित मंत्रों (“ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः”) का जाप कर भगवान को केले और तुलसी का भोग लगाए |
- इस व्रत वाले दिन गरीब ब्राह्मण को दान देना परम श्रेयस्कर है ।
योगिनी एकादशी 2025 पारण :
योगिनी एकादशी पारण
शनिवार, 21 जून 2025 को योगिनी एकादशी
22 जून को पारण का समय- दोपहर 01:46 बजे से शाम 04:33 बजे तक
पारण दिवस पर हरि वासर समाप्ति क्षण – 09:40 पूर्वाह्न
एकादशी तिथि प्रारंभ – 21 जून 2025 को प्रातः 07:15 बजे से
एकादशी तिथि समाप्त – 22 जून 2025 को प्रातः 04:25 बजे
जब व्रत पूरा हो जाता है और व्रत को तोड़ा जाता है उसे पारण कहते है । एकादशी व्रत के अगले दिन सूर्योदय के बाद एकादशी का पारण किया जाता है। पारण द्वादशी तिथि के भीतर करना आवश्यक होता है ,जब तक कि द्वादशी सूर्योदय से पहले समाप्त न हो जाए। द्वादशी के भीतर पारण न करना अपराध के समान माना जाता है |
हरि वासर के दौरान पारण नहीं करना चाहिए। व्रत तोड़ने से पहले हरि वासर खत्म होने का इंतजार करना चाहिए। हरि वासर द्वादशी तिथि की पहली एक चौथाई अवधि है। संस्कृत की प्राचीन भाषा में, हरि वासर को भगवान विष्णु से संबंधित दिव्य समय के रूप में प्रतिध्वनित किया जाता है (हरि: विष्णु का एक विशेषण; वासर: ब्रह्मांडीय घंटा)। एकादशी तिथि के दौरान, पवित्र हरि वासर प्रकट होता है, जो भगवान विष्णु की पूजा के लिए समर्पित है।
व्रत तोड़ने का सबसे पसंदीदा समय प्रातःकाल है। मध्याह्न के दौरान व्रत तोड़ने से बचना चाहिए। यदि किसी कारणवश कोई व्यक्ति प्रातःकाल में व्रत नहीं खोल पाता है तो उसे मध्याह्न के बाद व्रत करना चाहिए।
कभी-कभी लगातार दो दिनों तक एकादशी व्रत रखने का सुझाव दिया जाता है। यह सलाह दी जाती है कि समर्था को परिवार सहित केवल पहले दिन उपवास करना चाहिए। जब स्मार्थ के लिए वैकल्पिक एकादशियों के उपवास का सुझाव दिया जाता है तो यह वैष्णव एकादशियों के उपवास के दिन के साथ मेल खाता है।
भगवान विष्णु के प्रेम और स्नेह की तलाश करने वाले कट्टर भक्तों को दोनों दिन एकादशियों का उपवास करने का सुझाव दिया जाता है |
योगिनी एकादशी व्रत कथा :
प्राचीन समय की बात है अलकापुरी में कुबेर के यहां एक हेम नामक माली रहता था । वह शंकर भगवान का भक्त था और उनकी पूजा के लिए नित्य प्रति मानसरोवर झील से फूल लाया करता था । एक दिन वह कामोन्मत्त होकर अपनी स्त्री के साथ स्वछन्द विहार करने के कारण फूल लाने में प्रमाद कर बैठा तथा कुबेर के दरबार में विलम्ब से पंहुचा ।
क्रोधी कुबेर के श्राप से वह कोढ़ी हो गया । कोढ़ी रूप में जब वह मार्कंडेय ऋषि के पास पहुंचा तब उन्होंने योगिनी एकादशी व्रत रखने का नियम बताया । व्रत के प्रभाव से उसका कोढ़ समाप्त हो गया तथा दिव्य शरीर प्राप्त करके स्वर्ग लोक को चला गया ।
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