रक्षाबंधन 2025 : Date/Time and Celebration of Unbreakable bonding of affection & Love !

रक्षाबंधन 2025 महत्त्व :

रक्षाबंधन का त्यौहार सावन की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है |
यह भाई-बहन को स्नेह की डोर में बांधने वाला त्यौहार है | इस दिन बहन भाई के हाथ में रक्षा सूत्र बांधती है तथा मस्तक पर टीका लगाती है और भाई की लम्बी उम्र , उनके सफल होने और निरंतर प्रगति पथ पर अग्रसर रहने की ईश्वर से प्रार्थना करती है | वही भाई भी बहन की रक्षा करने का संकल्प लेता है |
धार्मिक ग्रंथो के मुताबिक रक्षाबंधन का पर्व भद्र कल में नहीं मनाना चाहिए |
रक्षाबंधन का अर्थ है किसी को अपनी रक्षा के लिए बांध लेना |

रक्षाबंधन के संदर्भ में महाभारत के समय का एक प्रसंग सबसे प्रेरक है |
एक बार जब भगवान श्री कृष्ण ने शिशुपाल का वध किया था तब श्रीकृष्ण की कलाई में चोट लग गई तथा खून गिरने लगा । द्रोपदी ने जब देखा तो उन्होंने तुरंत धोती की कोर फाड़ कर भाई के हाथ में बांध दिया । इसी बंधन के ऋणी श्री कृष्ण ने दुशासन द्वारा चीर खींचते समय द्रोपदी की लाज रखी थी ,

मध्यकालीन इतिहास से एक ऐसी घटना मिलती है जिसमें चित्तौड़ की हिंदू रानी कर्मवती ने दिल्ली के मुगल बादशाह हुमायूँ को अपना भाई मानकर उसके पास राखी भेजी थी । , हुमायूँ ने कर्मवती की राखी स्वीकार कर ली और उसकी सम्मान के लिए गुजरात के बादशाह से युद्ध किया ।

रक्षाबंधन पर राखी बांधने का मुहूर्त :

शनिवार, 9 अगस्त 2025 को रक्षा बंधन
रक्षाबंधन धागा समारोह समय – सुबह 05:47 बजे से दोपहर 01:24 बजे तक
अवधि – 07 घंटे 37 मिनट
रक्षाबंधन की भद्रा सूर्योदय से पहले ही समाप्त हो गई
पूर्णिमा तिथि प्रारंभ – 08 अगस्त 2025 को दोपहर 02:12 बजे से
पूर्णिमा तिथि समाप्त – 09 अगस्त, 2025 को दोपहर 01:24 बजे

रक्षाबंधन

रक्षाबंधन व्रत कथा :

एक बार युधिष्ठिर ने श्री कृष्ण से पूछा – हे ! भगवन मुझे रक्षाबंधन की वह कथा सुनाइए जिससे मनुष्य की प्रेत बाधा तथा दु:ख दूर होता है । इस पर श्री कृष्ण ने कहा – हे पांडव श्रेष्ठ ! प्राचीन समय में एक बार देवों तथा असुरों में 12 वर्षों तक युद्ध हुआ इस संग्राम में देवराज इंद्र की पराजय हुई ।
देवता कांति विहीन हो गए । इंद्र ग्रहण स्थल छोड़कर विजय की आशा को तिलांजलि देकर देवताओं सहित अमरावती में चला गया । विजेता दैत्य राज ने तीनों लोगों को अपने वश में कर लिया उसने राज पद से घोषित कर दिया कि इंद्रदेव सभा में ना आए तथा देवता एवं मनुष्य यज्ञ कर्म न करें ।

सब लोग मेरी ही पूजा करें । जिसको इसमें आपत्ति हो वह राज्य छोड़कर चला जाए । दैत्य राज की इस आज्ञा से यज्ञ , वेद पठन – पाठन तथा उत्स्व समाप्त कर दिए । धर्म के नाश होने से देवो का बल घटने लगा ।
इधर इंद्र दानवों से भयभीत हो , बृहस्पति देव को बुला कर कहने लगा – हे ! गुरुदेव ! मैं शत्रुओं से घिरा हुआ प्राणांत संग्राम करना चाहता हूँ ।

इस बात पर पहले बृहस्पति देव जी ने समझाया कि को करना व्यर्थ है परंतु इंद्र की हठविदिता तथा पूर्णिमा के प्रातः काल की रक्षा का विधान संपन्न किया गया ।
” येन बद्धो बलि राजा दानवेंद्रो महाबल : ।
तेन त्वामभिवनामि रक्षे मा चल मा चल : “।।

उक्त मंत्र उच्चारण से बृहस्पति महाराज ने श्रावण पूर्णिमा के ही दिन रक्षा विधान किया । सह धर्मानी इंद्राणी के साथ व्रत संहारक इंद्र ने बृहस्पति की उस वाणी का अक्षरश: पालन किया । इंद्राणी ने ब्राह्मण पुरोहितों द्वारा स्वस्तिवाचन कराके इंद्र के दाएं हाथ में रक्षा की पोटली बांध दी । इसी के बल पर इंद्र ने दंगों पर विजय प्राप्त की ।

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