रविवार व्रत – In 2025 Fasting on Sunday will fulfill all your dreams !

रविवार व्रत धारण करने की विधि और महत्व :

सर्व मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए रविवार (भगवान सूर्य) का व्रत सबसे श्रेष्ठ है | रविवार व्रत की विधि इस प्रकार है |  प्रातः काल  स्नान आदि करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें |  शांत मन से परमात्मा का स्मरण करें |  भोजन एक समय से अधिक नहीं करना चाहिए |  भोजन तथा फलाहार सूर्य का प्रकाश रहते कर लेना चाहिए |  यदि निराहार रहने पर सूर्य छिप जाए तो दूसरे दिन सूर्य उदय हो जाने पर अर्घ देने के बाद ही भोजन करें|  व्रत के अंत में सूर्य व्रत की कथा सुनानी  चाहिए |  रविवार व्रत के दिन नमकीन तेल युक्त भोजन ग्रहण न करें |  इस व्रत के करने से मान-सम्मान बढ़ता है |  आंखों की पीड़ा के अतिरिक्त अन्य सब पीड़ाएं दूर हो जाती हैं |

रविवार व्रत

 

 रविवार व्रत की कथा :

 एक बुढ़िया थी , उसका नियम था की प्रति रविवार को सवेरे ही स्नान आदि करके पड़ोसन की गाय के गोबर से घर को लीप कर फिर भोजन तैयार कर भगवान को भोग लगाकर स्वयं भोजन करती थी |  ऐसा व्रत करने से उसका घर धन-धान्य एवं आनंद से पूर्ण था | 

इस तरह कुछ दिन बीत जाने पर उसकी पड़ोसन विचार करने लगी कि यह वृद्धा हमेशा मेरी गौ का गोबर ले जाती है |  इसलिए वह अपनी गाय को घर के भीतर बांधने लगी |  बुढ़िया को गोबर ना  मिलने से रविवार के दिन वह अपने घर को लीप ना सकी |  इसलिए उसने ना तो भोजन बनाया और ना भगवान को भोग लगाया तथा स्वयं भी उसने भोजन नहीं किया |  इस प्रकार उसने निराहार व्रत किया |

 रात हो गई और वह भूखी सो गई |  रात में भगवान ने उसे स्वप्न दिया और भोजन न बनाने तथा भोग न लगाने का कारण पूछा |  वृद्धा ने गोबर न मिलने का कारण बताया |  तब भगवान ने कहा- ”  माता !  हम तुमको ऐसी गाय देते हैं जिससे सभी इच्छाएं पूर्ण होगी |  क्योंकि तुम हमेशा रविवार को गाय के गोबर से घर लीप कर भोजन बनाकर मेरा भोग लगाकर खुद भोजन करती हो |  इससे मैं खुश होकर तुमको यह वरदान देता हूं तथा अंत समय में मोक्ष देता हूं | ” 

स्वप्न में ऐसा वरदान देकर भगवान अंतर्ध्यान हो गए और जब वृद्धा की आंख खुली तो वह देखती है कि आंगन में अति सुंदर गाय और बछड़ा बंधे हुए हैं |  वह गाय और बछड़े को देखकर वह अत्यंत प्रसन्न हुई और उनको घर के बाहर बांध दिया |  वहीं खाने का चारा डाल दिया |

जब उसकी पड़ोसन ने बुढ़िया के घर के बाहर एक अति सुंदर गाय और बछड़े को देखा तो द्वेष के कारण उसका हृदय जल उठा तथा जब उसने देखा की गाय ने सोने का गोबर किया है तो वह उस गाय का गोबर ले गई और अपनी गाय का गोबर उसकी जगह पर रख दिया |  वह नित्य प्रति ऐसा करती रही और सीधी-सादी बुढ़िया को उसकी खबर तक नहीं थी | 

भगवान ने संध्या के समय अपनी माया से बड़े जोर के आंधी चला दी क्योंकि भगवान ने सोचा कि चालाक  पड़ोसन के काम से बुढ़िया ठगी जा रही है इसलिए कुछ करना पड़ेगा |  बुढ़िया ने अंधेरी के भय से अपनी गाय को घर के भीतर बांध दिया |  प्रातः काल उठकर जब वृद्धा ने देखा की गाय ने सोने का गोबर दिया है तो उसके आश्चर्य की सीमा ना रही और वह प्रतिदिन गाय को घर के भीतर बांधने लगी |

 उधर पड़ोसन ने देखा की बुढ़िया अब गाय को घर के भीतर बांधती है और उसका सोने का गोबर उठाने को नहीं मिलता है तो वह ईर्ष्या से जल उठी और उसे कुछ उपाय सुझा ,उसने उस देश के राजा की सभा में जाकर कहा -”  महाराज!  मेरे पड़ोस में एक वृद्धा के पास ऐसी गाय हैं जो रोज सोने का गोबर देती है |  आप उस सोने से प्रजा का पालन कीजिए |  वह वृद्धा इतने सोने का क्या करेगी ? ”  राजा ने यह बात सुन अपने दूतो से वृद्धा के घर जाने को कहा और वृद्धा के घर से गाय लाने को कहा |

  वृद्धा प्रातः काल ईश्वर का भोग लगाकर भोजन ग्रहण ही करने जा रही थी कि राजा के कर्मचारी गाय खोलकर ले गए |  वृद्धा काफी रोई और चिल्लाई किंतु कर्मचारियों ने एक न सुनी |  उस दिन वृद्धा गाय के वियोग में भोजन न कर सकी और रात भर रो-रो कर ईश्वर से गाय को पाने के लिए प्रार्थना करने लगी |

 उधर राजा गाय को देखकर बहुत प्रसन्न हुआ |  लेकिन सुबह जैसे ही वह उठा सारा महल गोबर से भरा दिखाई देने लगा |  यह देखकर राजा घबरा गया |  भगवान ने रात में राजा से स्वप्न में कहा -”  राजा !  गाय वृद्धा को लौटाने में ही तेरा भला है |  उसके रविवार के व्रत से प्रसन्न होकर मैंने उसे गाय दी थी |”  प्रातः होते ही राजा ने वृद्धा को बुलाकर बहुत से धन के साथ सम्मान सहित गाय व बछड़ा लौटा दिए |  उसकी पड़ोसन को बुलाकर उचित दंड दिया और इतना करने के बाद राजा के महल से गंदगी दूर हो गई |

 उसी दिन से राजा ने नगर वासियों को आदेश दिया कि राज्य की तथा अपनी समस्त मनोकामनाओं को पूरा करने के लिए रविवार का व्रत करो |  रविवार व्रत करने से नगर के लोग सुखी जीवन व्यतीत करने लगे |  कोई भी बीमारी तथा प्रकृति का प्रकोप उस नगर पर नहीं पड़ा और सारी प्रजा खुशी-खुशी रहने लगे |

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