वट सावित्री व्रत 2025 का महत्व :
ज्येष्ठ कृष्ण अमावस्या को बड़ अमावस्या कहते हैं | बड़ अमावस को बड़ के पेड़ की पूजा होती हैं | मान्यता यह है की वट सावित्री व्रत के दिन सुहागिन महिलाये वट यानी बरगद के पेड़ की पूजा करती हैं, इसके पीछे की मान्यता यह है की हिन्दू धर्म में बरगद के पेड़ में ब्रह्मा , विष्णु ,और शिवजी भगवान जी का वास होता हैं | इस व्रत को करने से पति की लम्बी उम्र होती हैं और संतान प्राप्ति की मनोकामना पूरी होती हैं | इस पर्व को बड़मावस के नाम से भी जाना जाता हैं |
इस दिन पानी , मौली , रोली , चावल गुड़ , भीगा हुआ चना , फूल , सूट मिलकर बड़ को लपेटते हैं और फेरी देते हैं | बड़ के पत्तों का गहना बनाकर पहनते हैं और बड़ अमावस की कहानी सुनते हैं | भीगे हुए चनो में रूपये रखकर बायना निकालते हैं | फिर हाथ फेरकर घर के बड़ो (सास ) के पैर छूकर बायना देते हैं |
वट सावित्री अमावस्या मुहूर्त
सोमवार, 26 मई 2025 को वट सावित्री अमावस्या
अमावस्या तिथि प्रारम्भ – 26 मई 2025 को दोपहर 12:10 बजे से
अमावस्या तिथि समाप्त – 27 मई 2025 को प्रातः 08:32 बजे
2024 वट सावित्री व्रत नियम एवं पूजा विधि :
- महिलाएं सूर्य उदय होने से पहले स्नान करती है।
- महिलाएं हार सिंगार करके तैयार होती हैं, इसके साथ-साथ चूड़ियां भी पहनती है जो कि सुहागिनों की निशानी है।
- पूजा के बाद पेड़ के चारों तरफ लाल/ पीले रंग का धागा बांधते हैं, उसके बाद पेड़ को चावल, फूल और पानी चढ़ाते हैं; फिर पूजा करने के साथ पेड़ तीव्र करना करते है।
- यदि बरगद का पेड़ मौजूद नहीं है, तो भक्त लकड़ी पर चंदन का पेस्ट या हल्दी की मदद से पेड़ का चित्र बना सकते हैं।
- पूजा खत्म होने के बाद परिवार के सभी सदस्यों के बीच प्रसाद बांटा जाता है। महिलाएं अपने घर के बड़ों का आशीर्वाद लेते हैं।
- भक्तों को दान और गरीबों को कपड़े, भोजन, फल आदि वस्तुओं का उपहार दिए जाते हैं।
वट सावित्री व्रत पूजा सामिग्री:
पूजा के लिए मुख्य रूप से इस बड़ यानि वट के पेड़ की पूजा होती है | इसके साथ अगर घर में सावित्री जी की मूर्ति है तो वह भी पूजा के स्थान पे रख सकते है | पूजा सामिग्री में सूत का धागा ,कलश, मिटटी का दीपक , मौसमी फल (खरबूजा ,आम इत्यादि ), बास का पंखा , लाल रंग का कपड़ा , सिन्दूर , हल्दी , मौली , चढ़ावे के लिए पकवान , प्रशाद के लिए कुछ मीठा एवं पीतल का पात्र अर्पित करने के लिए |
वट सावित्री व्रत 2025 कथा :
भद्र देश में अश्वपति नाम का राजा था जिसके संतान नहीं थी | उसने बड़े – बड़े पंडितो को बुलाया और कहा – ” मेरे संतान नहीं है | इसलिए मुझे कुछ ऐसा उपाय बताओ जिससे मेरे संतान हो जाये | ” पंडित बोले -” भाई संतान तो तुम्हारे एक पुत्री लिखी है जो 12 वर्ष की आयु में विधवा हो जाएगी | ” राजा ने कहा -” क्या मेरा नाम ही नहीं रहेगा ? ” राजा ने बाद में खूब यज्ञ और हावन कराये | पंडितो ने कहा की – “उस लड़की से पार्वती की और सायत अमावस की पूजा कराना | ”
” यज्ञ-होम होने से स्त्री गर्भवती हो गई तो पंडितो ने उसकी जन्मपत्री देखकर कहा -” जिस दिन यह कन्या 12 वर्ष की होगी उस दिन इसका विधवा होने का योग है | इसलिए इससे पार्वती जी और सायत अमावस की पूजा कराना | ”
” जब सावित्री बड़ी हुई तो उसका विवाह सत्यवान के साथ कर दिया | सावित्री के सास-ससुर अंधे थे | वह उनकी बहुत सेवा करती थी और सत्यवान जंगल से लकड़ी तोड़कर लाया करता था और सावित्री को मालूम था की जिस दिन वो 12 वर्ष की होगी उस दिन उसके पति की मृत्यु हो जाएगी |
जिस दिन वह 12 वर्ष की हुई , उस दिन वह अपने पति से हाथ जोड़कर बोली -” आज मैं आपके साथ चलूंगी | ” सत्यवान बोला – ” तुम मेरे साथ चलोगी तो मेरे अंधे माँ , बाप की सेवा कोन करेगा ? अगर वह कहेंगे तो तुम्हे साथ ले चलूँगा | ” फिर वह अपने सास-ससुर के पास गई और जाकर बोली -” आप कहे तो आज मैं जंगल देखने जाऊँ ? ” वे बोले – ” बहुत अच्छी बात है , चली जाओ | ”
जंगल में जाकर सावित्री लकड़ी तोड़ने लगी और सत्यवान पेड़ की छाया में सो गया | उस पेड़ में सांप रहा करता था | उसने सत्यवान को डस लिया | वह अपने पति को गोदी में लेकर रोने लगी | महादेव और पार्वती वहा से होकर जा रहे थे | उसने उनके पैर पकड़ लिए और बोली – ” मेरे पति को जिन्दा कर दो | ” वे बोले -” आज बड़ सायत अमावस है | उसकी तू पूजा करेगी तो तेरा पति जिन्दा हो जायेगा | ” इससे वह खूब प्रेम से बड़ की पूजा करने लगी | उसने बड़ के पत्तो का गहना बनाकर पहना जो हीरे – मोती के हो गए | इतने में धर्मराज का दूत आ गया और उसके पति को ले जाने लगा | सावित्री ने उसके पैर पकड़ लिए |
धर्मराज बोले – ” तू वरदान मांग | ” सावित्री ने कहा – ” मेरे माँ – बाप के पुत्र नहीं है , वे पुत्रवान हो जाएँ | ” धर्मराज बोले – ” सत्यवचन हो जायेगा | ” फिर वह बोली – ” मेरे सास-ससुर अंधे है , उनके नेत्रों में ज्योति आ जाये | ” धर्मराज ने यह वर भी दे दिया | पर सावित्री ने धर्मराज का पीछा नहीं छोड़ा | धर्मराज ने कहा – ” अब तुम्हे और क्या चाहिए ? ” सावित्री बोली – ” मुझे सौ पुत्र हो जाये | ” धर्मराज बोले – ” तथास्तु ! ” फिर वह सत्यवान को ले जाने लगे | तब सावित्री बोली ” हे महाराज ! आप मेरे पति को ले जायेंगे तो पुत्र कहा से होंगे ? ”
धर्मराज ने कहा – ” हे सती ! तेरा सुहाग तो नहीं था किन्तु बड़ अमावस करने से और पार्वती जी की पूजा करने से तेरा पति जीवित हो जायेगा | ” सारे में ढिंढोरा पिटवा दिया की कहते-सुनते जेठ की अमावस आएगी जब बड़ की पूजा करना और बड़ के पत्तो का गहना बनाकर पहनना | बायना निकालना |
हे महाराज ! जैसे बड़ अमावस ने सावित्री को सुहाग दिया उसी प्रकार सबको दियो | जो भी इस कहानी को कहता सुनता है उसकी सब मनोकामनाएं पूर्ण होती है | बड़ सायत अमावस को वट सावित्री और वर अमावस भी कहते है |
FAQs (Frequently Asked Questions):
Q1. वट सावित्री व्रत क्यों महत्वपूर्ण है
Ans. वट सावित्री प्रमुख हिंदू त्योहारों में गिना जाता है। इस दिन विवाहित महिला द्वारा व्रत रखने से उसके पति को लंबी उम्र और समृद्धि मिलती है।
Q2 . वट सावित्री अमावस्य व्रत और वट सावित्री पूर्णिमा व्रत में क्या अंतर है ?
Ans. उत्तर प्रदेश , मध्य प्रदेश, बिहार , पंजाब और हरयाणा में वट सावित्री व्रत की पूजा ज्येष्ठ मास की अमावस्या तिथि को मनाई जाती है | इसे वट सावित्री अमावस्या भी कहा जाता है |
महाराष्ट्र , गुजरात और दक्षिण भारतीय राज्यों में वट सावित्री व्रत की पूजा ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा तिथि को मनाई जाती है जिसे वट सावित्री पूर्णिमा भी कहा जाता है |
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