शुक्रवार व्रत – In 2025 Fasting on Friday will fulfill all your wishes !

शुक्रवार व्रत धारण करने की विधि और महत्व :

शुक्रवार व्रत को करने वाला कथा कहते वह सुनते समय हाथ में  गुड़ और भुने हुए चने रखें । कथा सुनते वक्त संतोषी माता की जय-जयकार के नारे लगाए । कथा समाप्त होने पर हाथ से गुड़ चना गाय माता को खिलाएं । कलश में रखा हुआ जल , गुड़ चना सबको प्रसाद के रूप में बांटे । 

कथा से पहले कलश को जल से भरे , उसके ऊपर गुड़ चने से भरा कटोरा रखें , शुक्रवार व्रत कथा समाप्त होने पर आरती होने के बाद कलश के जल को घर में सब जगह पर छिड़के और बचा हुआ पानी तुलसी जी की क्यारी में डाल दे ।

श्रद्धा और प्रेम से शुक्रवार व्रत प्रसन्न मन से संतोषी माता के लिए करना चाहिए ।

संतोषी माता के व्रत के दौरान घर में कोई खटाई न खाएं और न स्वयं खाएं और ना किसी को दे ।

शुक्रवार व्रत

शुक्रवार व्रत की कथा :

एक बुढ़िया थी और उसके साथ पुत्र थे । सात पुत्रों में 6 पुत्र कमाने वाले थे और एक निकम्मा था । बुढ़िया मां छहों की रसोई बनाती । उनको भोजन कराती और बाद में जो बचता वह सातवें को दे देती । परंतु वह भोला था  । मन में कुछ विचार न करता था । एक दिन वह अपनी पत्नी से बोला – ” देखो मेरी माता का मुझ पर कितना प्यार है । ” वह बोली – ” क्यों नहीं । सबका झूठा , बचा हुआ तुमको खिलाती है । ” वह बोला – ” ऐसा कभी नहीं हो सकता । मैं जब तक अपनी आंखों से ना देख लूं मैं नहीं मानूंगा । ” उसकी पत्नी बोली – ” देख लोगे तब तो मानोगे ? “

कुछ दिन बाद एक बड़ा त्योहार आया । घर में सात प्रकार के भोजन और चूरमा के लड्डू बने । वह देखने के लिए सिर दर्द का बहाना कर पतला कपड़ा सिर पर ओढ़ कर रसोई में लेट गया और कपड़े में से सब देखता रहा । उसके छहों भाई भोजन करने आए । उसने देखा की मां ने उनके लिए सुंदर-सुंदर आसान बिछाए हैं ।

साथ प्रकार की रसोई परोसी है । वह आग्रह करके उन्हें जमाती रही । वह देखता रहा । जब छहों भाई भोजन करके उठे तब झूठी थालियां में से लड्डुओं के टुकड़ों को उठाया और एक लड्डू बनाया ।

झूठन साफ कर मां ने उसे पुकारा – ” बेटा उठो तेरे सब भाई भोजन कर गए हैं अब तू ही बचा है । कब खाएगा ? ” वह कहने लगा – ” मां ! मुझे भोजन नहीं करना । मैं परदेस जा रहा हूं । ” माता ने कहा – ” चल जाता हो तो आज ही चला जा । ” वह बोला – ” हां मां आज ही जा रहा हूं । ” यह कहकर वह घर से निकल गया । चलते समय उसे पत्नी की याद आई । वह गौशाला में कंडे थाप रही थी ।

वह उससे जाकर बोला —

दोहा – हम जावे परदेश को , आवेंगे कुछ काल ।

          तुम रही यो संतोष से धर्म आपानो पाल ।।

वह बोली —

            जाओ पिया आनंद से , हमरो सोच हटाए ।

            राम भरोसे हम रहे , ईश्वर तुम्हें सहाय ।।

            देवों निशानी आपानी देख धरूँ मैं धीर ।

             सुधि हमरी ना बिसारियो रखियो मन गंभीर ।

वह बोला – ” मेरे पास तो कुछ है नहीं । यह अंगूठी है । यह अंगूठी ले लो और अपनी कुछ निशानी दे दो । ” वह बोली – ” मेरे पास क्या है ? यह गोबर से भरा हुआ हाथ । ” यह कहकर पत्नी ने उसकी पीठ पर गोबर के हाथ की थाप मार दी । वह चल दिया ।

चलते-चलते दूर देश में पहुंचा । वहां एक साहूकार की दुकान थी । वह दुकान पर जाकर कहने लगा – ” भाई ! मुझे नौकरी पर रख लो । ” साहूकार को जरूरत थी । वह बोला – ” रह जा । ” लड़के ने पूछा – ” तन्ख़वाह  क्या दोगे ? ” साहूकार ने कहा – ” काम देखकर दाम मिलेंगे । ” साहूकार के यहां उसकी नौकरी मिल गई ।

वह सुबह 7:00 बजे से रात तक नौकरी करने लगा । कुछ दिनों में दुकान का सारा लेनदेन का हिसाब , ग्राहकों को माल बेचना , सारा काम करने लगा । साहूकार के सात आठ नौकर थे । सब सच में पड़ गए कि यह तो बहुत होशियार बन गया । साहूकार ने भी काम देखा और 3 महीने में उसे आधे मुनाफे का साझेदार बना लिया और 12 वर्ष में वह नामी सेठ बन गया । और थोड़े दिन बाद साहूकार सारा कारोबार उसके सर पर छोड़कर बाहर चला गया ।

अब बहू पर क्या बीती सुनो । सास-ससुर उसे दुख देने लगे । सारी गृहस्थी का काम कर के उसे लकड़ी लेने जंगल भेजते और घर की रोटियों के आटे के भूसे से जो भूसी निकलती उसकी रोटी बनाकर रख दी जाती और फूटे नारियल की नरेली में पानी । इस तरह दिन बीतते रहे ।

एक दिन वह लकड़ी लेने जा रही थी । रास्ते में उसे बहुत सी स्त्रियां संतोषी माता का शुक्रवार व्रत करती दिखाई दी । वह वहां खड़ी हो कथा सुनकर बोली – ” बहनों ! तुम कोनसे देवता का व्रत करती हो और इसके करने से क्या फल मिलता है ?  कृपा करके इस व्रत करने की मुझे विधि और विधान बताओ मैं आप सब का बहुत अहसान मानूंगी । ” तब उनमें से एक स्त्री बोली – ” सुनो , यह संतोषी माता का व्रत है । इसके करने से निर्धनता , दरिद्रता का नाश होता है । लक्ष्मी आती है । मां की चिंताएं दूर होती है । घर में सुख आने से मन को प्रसन्नता और शांति मिलती है ।

यह सुनकर बहू जल्दी । रास्ते में लकड़ी के बोझ को बेच दिया और उसे उन पैसों से गुड़-चना ले माता के व्रत की तैयारी कर आगे चल दी । सामने मंदिर में देख पूछने लगी -” यह मंदिर किसका है ? ” लोगों ने बताया – ” यह संतोषी माता का मंदिर है । ” यह सुन माता के मंदिर में जा माता के चरणों में लोटने लगी और विनती करने लगी – ” मां ! मैं निपट मूर्ख हूं । व्रत के नियम नहीं जानती । मैं बहुत दुखी हूं । हे माता ! जगत जननी ! मेरा दुख दूर करो । मैं तेरी शरण में आई हूं ।

माता को दया आ गई । एक एक शुक्रवार बीता ही था कि दूसरे शुक्रवार व्रत को उसके पति का पत्र आया और तीसरे को उसका भेजा हुआ पैसा भी पहुंचा ।

 यह देख जेठानिया मुँह सिकोड़ने लगी – ” इतने दिनों में इतना पैसा आया है इसमें क्या बड़ाई है ? ” लड़के ताना देने लगे – ” काकी के पास अब पत्र आने लगे , रूपया आने लगा , अब तो काकी की खातिर बढ़ेगी , और काकी बुलाने से भी नहीं बोलेगी । ” वह सरलता से बोली – ” भैया ! पत्र आए , रुपया आए , तो इसमें हम सब की ही तो भलाई है । ” ऐसा कहकर उसकी आंखों में आंसू आ गए और वह संतोषी माता के मंदिर में आ गई ।

यह संतोषी माता के चरणों में गिरकर रोने लगी – ” मां ! मैं तुमसे पैसा नहीं मांगा । मुझे पैसों से क्या काम ? मुझे तो अपने सुहाग से ही काम है । मैं तो अपने स्वामी के दर्शन और सेवा मांगती हूं । ” तब माता ने प्रसन्न होकर कहा – ” जा बेटी ! तेरा स्वामी आएगा । ” यह सुनकर खुशी से वह घर को लौट आई ।

अब संतोषी माता विचार करने लगी – ” इस भोली पुत्री से मैंने कह तो दिया तेरा पति आएगा पर आएगा कहां से ? वह तो इस स्वप्न में भी याद नहीं करता । उसे याद दिलाने के लिए मुझे जाना पड़ेगा । ” इस तरह संतोषी माता उसके पति के स्वप्न में प्रकट हो गई और कहने लगी – ” साहूकार के बेटे सोता है या जागता है ? ” वह बोला – ” माता ! सोता भी नहीं हूं , जागता भी नहीं हूं , बीच में ही हूं । कहो क्या आज्ञा है ? ” मां कहने लगी – ” तेरा घर-बार कुछ है या नहीं ? ”

वह बोला – ” मेरा सब कुछ है । मां-बाप , भाई बहन , पत्नी । ” मां बोली – ” भोले पुत्र ! तेरी पत्नी घर कष्ट में है । तेरे मां-बाप उसे दुख दे रहे हैं । वह तेरे लिए तरस रही है । तू उसकी सुधि  ले । ” वह बोला – ” माता ! यह तो मुझे मालूम है । परंतु जाऊं कैसे ? परदेस की बात है । लेनदेन का कोई हिसाब नहीं । जाने का कोई रास्ता नजर नहीं आता । मां कहने लगे – ” मेरी बात मानो । सवेरे नहा धोकर संतोषी माता का नाम लो और घी का दीपक जलाओ । दंडवत दुकान पर बैठ जाना और तब देखते ही देखे तेरा सारा लेनदेन चुक जाएगा ।

तब वे सवेरे बहुत जल्दी उठकर नहा धोकर संतोषी माता को दंडवत कर , घी का दीपक जला दुकान पर जा बैठा । थोड़ी देर में क्या देखा है की देने वाले रुपया ले आए , लेने वाले हिसाब लेने लगे , सामानों के खरीदार नगद दाम  में सौदा करने लगे । शाम तक धान का ढेर लग गया । माता का यह चमत्कार देख खुश हो , मन में माता का नाम ले घर ले जाने के वास्ते गहना व कपड़ा खरीदने लगा । और वहां के काम से निपट तुरंत रवाना हुआ ।

उधर बहू बेचारी जंगल में लकड़ी लेने जाती है । लौटते वक्त माता जी के मंदिर में विश्राम करती है । वह तो उसका रोज रुकने का स्थान ठहरा । दूर से धूल उड़ती देखकर माता से पूछती है – ” हे माता ! यह धूल कैसी उड़ रही है ? ” मां कहती है – ” है पुत्री ! तेरा पति आ रहा है । अब तू ऐसा कर लकड़ियोंके तीन बोझ बना ले । एक नदी के किनारे रख , दूसरा मेरे मंदिर पर और तीसरा अपने सिर पर रख । “

तेरे पति को लकड़ी का गट्ठा देखकर मोह पैदा होगा । वह वहां रुकेगा , खाना खा-पी कर मां से मिलने जाएगा । अब तू लकड़ी का बोझ उठा कर जाना  और बीच चौक में गट्ठा डालकर तीन आवाज़े जोर से लगाना , को सासू जी ! लकड़ियोंका गट्ठा लो । भूसी की रोटी दो और नारियल के खोपरे में पानी दो । आज मेहमान कौन आया है ? “

मां की बात सुन – ” बहुत अच्छा माता ! कहकर प्रसन्न हो वह लकड़ियों के तीन गट्ठे ले आई । एक नदी के तट पर , एक माता के मंदिर पर रखा । इतने में ही मुसाफिर वहां आ पहुंचा । सुखी लकड़ियों को देख उसकी इच्छा हुई कि यही निवास करें और भोजन बना खा-पीकर गांव जाए । इस प्रकार भोजन बना विश्राम ले गांव को गया । सबसे प्रेम से मिला ।

इस समय उसकी पत्नी सर पर लकड़ी का गट्ठा लिए आती है । लकड़ी का भारी बोझ आंगन में गिरा देती है और फिर जोर से तीन आवाज़े लगाती हैं – ” लोग सासू जी ! लकड़ी को , भूसी की रोटी दो , नारियल के खोपरे में पानी दो , आज मेहमान कौन आया है ? ” यह सुनकर उसकी सास अपने दिए हुए कष्टों को भूलाने के लिए कहती है – ” बहु ! ऐसा क्यों कहती है ? तेरा पति ही तो आया है । आ बैठ , मीठा भात खा , भोजन कर , कपड़े गहने पहन । “

इतने में ही उसकी आवाज सुनकर उसका पति बाहर आता है और अंगूठी देख व्याकुल हो मां से पूछता है – ” मां ! यह कौन है ? ” मां कहती है – ” बेटा ! तेरी बहू है । आज 12 वर्ष हो गए । तू जब से गया है तब से सारे गांव में जानवर की तरह भटकती फिरती है । काम-काज घर का कुछ करती नहीं । चार समय आकर खा जाती है ।

अब तुझे देखकर भूसी की रोटी और नारियल के खोपरे में पानी मांगती है । ” वह लज्जित हो बोला – ” ठीक है अब मुझे दूसरे घर की चाबी दो तो मैं उसमें रहूं । ” तब मां बोली – ” ठीक है बेटा ! जैसी तेरी मर्जी । ” कहकर चाबी का गुच्छा पटक दिया । बेटे ने चाबी ले दूसरे कमरे में जो तीसरी मंजिल के ऊपर था , अपना सामान जमाया । एक दिन में ही वहां राजा के महल जैसा ठाट- बाट बन गया । अब क्या था , दोनों पति-पत्नी सुखपूर्वक रहने लगे ।

फिर अगला शुक्रवार व्रत आया । बहू ने पति से कहा -” मुझे शुक्रवार व्रत का उद्यापन करना है । ” पति बोला – “बहुत अच्छा , खुशी से करो । ” मैं तुरंत ही उद्यापन की तैयारी करने लगी । जेठ के लड़कों को भोजन के लिए खाने गई । उन्होंने मंजूर कर लिया । परंतु जेठानी अपने बच्चों को सिखाती है – ” देखो रे , भोजन के समय सब लोग खटाई मांगना जिससे उसका उद्यापन पूरा ना हो । ”

लड़के जीमने गए । खीर पेट भर खाई , परंतु याद आते ही कहने लगे – ” हमें कुछ खटाई दो । खीर खाना हमें भाता नहीं । ” बहु कहने लगी – ” खटाई किसी को नहीं दी जाएगी । यह संतोषी माता का प्रसाद है । ” लड़के उठ खड़े हुए बोले – ” पैसा दो । ” भोली बहु कुछ जानती नहीं थी , सो उसने उन्हें पैसे दे दिए । लड़के इस समय उठ करके इमली ला खाने लगे । यह देख बहू पर माताजी ने कोप किया । राजा के दूत उसके पति को पकड़ कर ले गए । जेठ जेठानी मनमानी कोट वचन कहने लगे ।

बहु से उनके वचन सहन नहीं हुए । भाई रोटी मंदिर में गई और बोली – ” हे माता ! तुमने यह क्या किया ? हंस कर अब क्यों रुलाने लगी हो ? ” माता बोली – ” पुत्री ! तूने उद्यापन करके मेरा व्रत भंग किया । इतनी जल्दी सब बातें भुला दी । ”  मैं कहने लगी – ” माता ! बोली तो नहीं हूं । ना कोई अपराध किया है । मुझे तो लड़कों ने भूल में डाल दिया । मैं भूल से उन्हें पैसे दे दिए । मुझे क्षमा करो मां । ” मां बोली – ” ऐसी भी भूल होती है ? ” वह बोली – ” मां मुझे माफ कर दो । मैं फिर तुम्हारा शुक्रवार व्रत का उद्यापन करूंगी ।

” मां बोली – ” अब भूल मत करना । ” वह बोली – ” अब भूलना होगी , अब बताओ वह कैसे आएंगे ? ” मां बोली – ” जा पुत्री ! तेरा पति तुझे रास्ते में ही आता मिलेगा । ” वह घर की तरफ चल दी । राह में उसका पति आता मिला । उसने पूछा – ” तुम कहां गए थे ? ” तब वह कहने लगा – ” इतना धन जो कमाया है उसका कर (टैक्स ) राजा ने मांगा था , वह भरने गया था । ” वह प्रसन्न हो बोली – ” भला हुआ । अब घर चलो । “

कुछ दिन बाद फिर शुक्रवार व्रत आया , वह अपने पति से बोली – ” मुझे माता का उद्यापन करना है । ” पति ने कहा करो । ” फिर जेठ के लड़कों से भोजन को कहने गई । जेठानी ने एक दो बातें सुनाई और लड़कों को सिखा दिया – ” तुम पहले ही खटाई मांगने लगना । ” लड़के भोजन के पहले ही कहने लगे – ” हमें खीर खाना नहीं भाता । जी खराब होता है । कुछ खटाई खाने को दो । ” वह बोली – ” खटाई  खाने को नहीं मिलेगी । खाना है तो खाओ । ”

वह ब्राह्मणों के लड़कों को लाकर भोजन करने लगी । यथाशक्ति दक्षिण की जगह एक-एक फल उन्हें दिया । इसे संतोषी मां प्रसन्न हुई । माता की कृपा होते ही नाव मास उनको चंद्रमा के समान सुंदर पुत्र प्राप्त हुआ । वह अपने पुत्र को लेकर प्रतिदिन माता जी के मंदिर में जाने लगी ।

एक दिन मां ने सोचा , रोज आती है । आज क्यों न मैं इसके घर चलूँ । इसका आसरा देखूँ तो सही । यह सोचकर माता ने भयानक रूप बनाया । गुड़ चने से सना मुख , ऊपर सूंड के समान होठ , उसे पर मक्खियाँ भिनभिना रही थी । दहलीज पर पांव रखते ही उसकी सांस चिल्लाई – ” देखो रे , कौन चुड़ैल चली आ रही है । लड़कों ! इसे भगाओ , नहीं तो किसी को खा जाएगी । ” लड़के डरने लगे और चिल्ला कर खिड़की दरवाजे बंद करने लगे । बहू रोशनदान से देख रही थी । प्रसन्नता से पागल होकर चिल्लाने लगी – ” आज मेरी माता मेरे घर आई है । ”

यह कहकर बच्चों को दूध पीने से हटा दिया । इतने में सास का क्रोध फूट पड़ा और बोली – ” इसे देखकर कैसी उतावली हुई है जो बच्चे को पटक दिया । ” इतने में मां के प्रताप से जहां देखो वही लड़के ही लड़के नजर आने लगे । बाहु बोली – ” मां जी ! जिनका मैं व्रत करती हूं यह वह संतोषी माता है । “

इतना कहा है झट से सारे घर के किवाड़ खोल दिए । सब ने माता के चरण पकड़ लिए और विनती करने लगे – “हे माता ! हम मुर्ख हैं , पापी हैं ,अज्ञानी है । तुम्हारा शुक्रवार व्रत की विधि हम नहीं जानते । तुम्हारा शुक्रवार व्रत भंग कर हमने बड़ा अपराध किया है । हे माता ! आप हमारे अपराध को क्षमा करो । “

इस प्रकार माता प्रसन्न हुई ।बहू का भी शुक्रवार व्रत पूर्ण हुआ | माता ने बहू को जैसा फल दिया वैसा माता सबको दे । जो पढ़े उसका मनोरथ पूर्ण
हो |

बोलो संतोषी माता की जय !

Bhakti Bliss