पितृ पक्ष श्राद्ध 2025 का महत्व :
भादप्रद की पूर्णिमा एवं आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा से अमावस्या तक का समय ” पितृ पक्ष ” कहलाता है | आसौज लगते ही पूर्णमासी से श्राद्ध शुरू हो जाते है और अमावस्या तक चलते है | पितृ पक्ष में पितरों की मरण तिथि को ही श्राद्ध किया जाता है |
गया में श्राद्ध करने का बड़ा महत्व माना गया है | पितृ पक्ष में देवताओ को जल देने के पश्चात मृतकों का नामोच्चारण करके उन्हें भी जल देना चाहिये | इसमें हम अपने पितरों की शांति के लिए ब्राह्मणो को भोजन कराकर दक्षिणा देते है | फिर पितरों को जल तर्पण करते है तथा पिंड दान करते है | यह एक साधना की तरह है जिससे हमारे पितृ तृप्त होते है और अपना आशीर्वाद हमेशा हमारे सिर पर रखते है |
श्राद्ध 2025 Date & Time :
श्राद्ध 2025अनुष्ठान का समय
प्रतिपदा श्राद्ध सोमवार, 8 सितम्बर 2025 को
कुतुप (कुतुप) मुहूर्त – सुबह 11:53 बजे से दोपहर 12:44 बजे तक
अवधि – 00 घंटे 50 मिनट
रोहिणा (रौहिण) मुहूर्त – दोपहर 12:44 बजे से 01:34 बजे तक
अवधि – 00 घंटे 50 मिनट
अपरहण काल - 01:34 PM से 04:04 PM तक
अवधि – 02 घंटे 30 मिनट
प्रतिपदा तिथि आरंभ – 07 सितंबर 2025 को रात 11:38 बजे से
प्रतिपदा तिथि समाप्त – 08 सितंबर 2025 को रात्रि 09:11 बजे
पितृ पक्ष का पहला श्राद्ध प्रतिपदा का होता है जो 8 सितंबर 2025 से शुरू है |
पितृ पक्ष चंद्र 16 दिनों की अवधि है जो बहुत महत्वपूर्ण समय है जब हमारे पूर्वज हमारे साथ संवाद करने का प्रयास करते हैं | यह 16 दिन भाद्रपद की पूर्णमासी से लेकर अमावस्या तक गिने जाते है |
यह अमावस्या भी उतनी ही महत्वपूर्ण है जितने यह 15 दिन | पितृ अमावस्या के दिन को पितृ विसर्जन भी कहते है , क्योकि उस दिन हमारे पितृ तर्पण होने के बाद विदा होते है |
पितृ पक्ष श्राद्ध 2025 के 16 दिनों के दौरान क्या होगा ?
- हमारे पूर्वज हमारे साथ विशेष रूप से संवाद करने का प्रयास करते हैं और यही वह समय है जब हम उन्हें श्राद्ध या प्रसाद अर्पित करते हैं। यह बहुत शुभ समय है | जिन लोगों ने अपने माता-पिता के लिए उचित अनुष्ठान नहीं किया है या किसी ऐसे व्यक्ति की मृत्यु पिछले वर्ष या पिछले 3-4 वर्षों में हुई है, आप इन 16 दिनों के दौरान अपनी साधना कर सकते हैं और उन्हें तर्पण दे सकते हैं। अपने पितरों की साधना करें क्योंकि हमारी नींव हमारे पूर्वजों पर आधारित है और सनातन धर्म इसे प्रोत्साहित करता है।
- पितृ लोक, जिसे पूर्वजों का क्षेत्र या दिवंगत लोगों का लोक भी कहा जाता है, माना जाता है कि यह मृत्यु के बाद के जीवन का एक विशिष्ट क्षेत्र है जहां मृत पूर्वजों की आत्माएं निवास करती हैं।
- पूर्वजों की तीन पीढ़ियाँ, उनकी मृत्यु के बाद, पितृ लोक नामक लोक में रहती हैं। पितृ पक्ष के दौरान, हर साल 16 दिनों के लिए यमराज या यम उन्हें भूलोक की यात्रा के लिए मुक्त करते हैं और इस दौरान उन्हें हमारी कृतज्ञता व्यक्त करने और उनके लिए प्रार्थना करने की सलाह दी जाती है ताकि वे उच्चतम लोक तक पहुंच सकें।
FAQ’s :
Q1. पितृ पक्ष श्राद्ध 2025 में किस मंत्र से पितरों की पूजा करे ?
Ans. पितरों की पूजा और साधना करने का सबसे सरल मन्त्र है “ॐ पितृ देवतायै नम:” ||
Q2. पितृ अमावस्या क्या होती है ? और यह किस दिन है ?
Ans. सर्व पितृअमावस्या , पितृ पक्ष श्राद्ध का आखिरी दिन होता है। यह बहुत महत्वपूर्ण दिन होता है, क्योंकि इस दिन सभी पितृ भूलोक से वापस यम लोक की ओर जाते है | इसलिए इसे हम पितृ – विसर्जन अमावस्या भी कहते है |
इस वर्ष की अमावस्या श्राद्ध 21 सितंबर 2025, दिन रविवार को है |
कुतुप (कुतुप) मुहूर्त – सुबह 11:50 बजे से दोपहर 12:38 बजे तक
अवधि – 00 घंटे 49 मिनट
रोहिणा (रौहिण) मुहूर्त – दोपहर 12:38 बजे से 01:27 बजे तक
अवधि – 00 घंटे 49 मिनट
अपरहण काल - 01:27 PM से 03:53 PM तक
अवधि – 02 घंटे 26 मिनट
अमावस्या तिथि आरंभ – 21 सितंबर, 2025 को 12:16 पूर्वाह्न
अमावस्या तिथि समाप्त – 22 सितंबर, 2025 को प्रातः 01:23 बजे
Q3. श्राद्ध 2025 में पिंड दान कैसे करें ?
Ans. पिंड दान करने से हमारे पितरों का तर्पण होता है | इसे करने के लिए केले के पत्ते या कुशा घास को साफ करने के बाद , तिल के साथ उबले चावल के गोले बनाएं। जल से सम्यक् भाव से तर्पण करें। आप चावल की एक गेंद बनाएं और उस पर अपना हाथ रखें। अपने पितरों के बारे में सोचें और उन्हें तर्पण दें।
ऐसा कहा जाता है कि इस दिन आम तौर पर कौआ आकर भोजन करता है क्योंकि कौवे पृथ्वी लोक से पितृ लोक का द्वार होते हैं।
Q4. अमावस्या पर पिंड दान क्यों करते है ?
Ans. हमारी नींव पितरों पर आधारित होती हैं ।आप जो पितरों के लिए योगदान दे सकते हैं वह आपकी भेंट है ताकि संपूर्ण ब्रह्मांड विकसित हो सके और हमें अपने पूर्वजों के आशीर्वाद की आवश्यकता होती है। इसे जागरूकता के साथ करना चाहिए क्योंकि सनातन धर्म में मृत्यु से पहले, मृत्यु के दौरान और मृत्यु के बाद भी सब कुछ अर्पित करना शामिल है।
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