सोमवार व्रत कथा – In 2025 Fasting on Monday will fulfill all your dreams

सोमवार व्रत धारण करने की विधि और महत्व :

सोमवार व्रत साधारणतया पर दिन के तीसरे पहर तक होता है। वैसे सामान्यता यह व्रत चैत्र , वैशाख , श्रावण तथा कार्तिक में भी किया जाता है | मगर सावन में इसका अधिक महत्व है | इस दिन व्रत रखकर भगवान शंकर तथा पार्वती की पूजा करनी चाहिए | इस प्रकार दिन में एक बार भोजन करना चाहिए | सोमवार व्रत के तीन प्रकार के होते हैं | साधारण प्रति सोमवार व्रत , सौम्य प्रदोष और सोलह सोमवार | विधि तीनो की ही एक जैसी है |

आईये जानते है साधारण सोमवार व्रत कथा किस प्रकार है –

सोमवार व्रत

 

सोमवार व्रत कथा :

एक बहुत धनवान साहूकार था जिसके घर धन आदि किसी प्रकार की कमी नहीं थी | परन्तु उसे एक बहुत दुःख था की उसके कोई पुत्र नहीं था | वह इसी चिंता में दिन रात रहता था | वह पुत्र की कामना के लिए प्रति सोमवार शिव जी का व्रत और पूजन किया करता था तथा सांयकाल को शिव मंदिर में जाकर शिव जी के सामने दीपक जलाया करता था | उसके इस भक्ति भाव को देखकर एक समय श्री पार्वती जी ने शिव जी महाराज से कहा – ” महाराज ! यह साहूकार आपका बहुत बड़ा भक्त है और सदैव आपका व्रत करता है | इसकी मनोकामना पूर्ण करनी चाहिये |

शिव जी ने कहा – हे! पार्वती यह संसार कर्म क्षेत्र है जैसे किसान खेत में जैसा बीज बोता है वैसा ही फल काटता है | उसी तरह इस संसार में जो जैसा कर्म करते हैं वैसा फल भोंगते हैं |

पार्वती जी ने कहा – हे! महाराज यह साहूकार आपका अनन्य भक्त है अगर इसको किसी भी तरह का दुःख है तो हमें उसे दूर करना चाहिए |

पार्वती जी का आग्रह देखकर शिव जी महाराज कहने लगे – “हे! पार्वती इसके कोई पुत्र नहीं है | इसी चिंता में यह अधिक दुखी रहता है | इसके भाग्य में कोई पुत्र न होने पर भी मैं इसको पुत्र प्राप्ति का वर देता हूँ , परन्तु यह पुत्र केवल बारह वर्ष तक ही जीवित होगा | इसके पश्चात् वह पुत्र मृत्यु को प्राप्त हो जायेगा |

यह सब बातें साहूकार सुन रहा था इससे उसको न तो दुःख हुआ न ही प्रसंता हुई वह पहले की तरह ही शिव भक्ति में लीन हो गया | कुछ वर्ष बाद साहूकार को एक सुन्दर पुत्र की प्राप्ति हुई| साहूकार के घर खुशियां मनाई गई परन्तु साहूकार ज्यादा खुश नहीं था क्यूंकि उसे पता था की उसके पुत्र की आयु सिर्फ 12 वर्ष ही है | जब साहूकार के पुत्र की आयु 11 वर्ष हो गई तो उसकी माता ने कहा कि अब इसका विवाह कर देना चाहिए, इस पर साहूकार ने कहा कि मैं अभी इसका विवाह नहीं करूंगा, मैं इसे अभी पढ़ने के लिए काशी भेजूंगा।

फिर साहूकार ने अपने साले को बुलाया और उसे बहुत सारा धन देकर कहा कि इस बालक को काशी ले जाओ तथा रास्ते में धर्म के कार्य करते हुए जाओ और ब्राह्मणों को भोजन भी कराना | वे दोनों मामा भांजे यज्ञ करते और ब्राह्मणों को भोजन कराते हुए जा रहे थे रास्ते में एक बड़ा शहर आया |

उस शहर में राजा की कन्या का विवाह था और जिसका विवाह था वह लड़का एक आंख से कहना था उसके पिता को इस बात की बड़ी चिंता थी कि कहीं वर को देख कर कन्या के माता पिता विवाह में किसी प्रकार की अड़चन पैदा न कर दें | इस कारण जब उसने सुंदर सेठ के लड़के को देखा तो मन में विचार किया कि क्यों ना दरवाजे के समय इस लड़के से वर का काम चलाया जाए |

विचारकर वर्ग के पिता ने उस लड़के के मामा से बात की तो वह राजी हो गए फिर उसे लड़के को वर के कपड़े पहना दिए और घोड़ी पर चढ़ा दिया सारे कार्य प्रसन्नता से पूर्ण हो गए फिर वर के पिता ने सोचा कि यदि विवाह कार्य भी इसी लड़के से कर लिया जाए तो क्या बुराई है ? फिर लड़के के पिता ने मामा भांजे से कहा कि मैं आपको बहुत सारा धन दूंगा यदि आप फेरे और कन्यादान का काम भी करा दे |

यह सुनकर दोनों मामा भांजे राजी हो गए और विवाह कार्य भी संपन्न हो गया परंतु जिस समय लड़का जाने लगा तो उसने राजकुमारी की चुंडली के पल्ले पे लिख दिया कि , तेरा विवाह तो मेरे साथ हुआ है परंतु जिस राजकुमार के साथ तुमको भेजेंगे वह एक आंख से काना है और मैं काशी की जा रहा हूं पढ़ाई करने के लिए |

लड़के के जाने के बाद अब राजकुमारी ने अपनी चुनरी पर यह सब लिखा हुआ पाया तो उसने राजकुमार के साथ जाने के लिए मना कर दिया और कहा यह मेरा पति नहीं है, मेरा पति वह है जो काशी जी पढ़ने के लिए गया है | यह सुनकर बारात वापस चली गई |

उधर सेठ का लड़का और उसका मामा काशी जी पहुंच गए वहां जाकर उन्होंने यज्ञ किया और लड़के ने पढ़ना शुरू कर दिया जब लड़के की आयु 12 साल की हो गई उसी दिन उन्होंने यज्ञ रखा | उस दिन लड़के ने अपने मामा से कहा-” मामा जी आज मेरी तबीयत कुछ ठीक नहीं है “, मामा ने कहा – ” अंदर जाकर सो जाओ ” , लड़का अंदर जाकर सो गया और थोड़ी देर में उसके प्राण निकल गए |

उसके मामा अंदर आए तो उसे मुर्दा देखकर बहुत दुखी हुए , यह देख उनको बहुत दुख हुआ लेकिन उन्होंने सोचा कि अगर मैं अभी रोना पीटना मचा दूंगा तो यज्ञ का कार्य पूरा नहीं होगा | अतः उसने जल्दी से यज्ञ का कार्य समाप्त कर ब्राह्मणों के जाने के बाद रोना पीटना आरंभ किया |

उसी समय शिव पार्वती जी उधर से जा रहे थे, जब उन्होंने जोर-जोर से रोने की आवाज सुनी तो पार्वती जी कहने लगी-” महाराज ! कोई दुखिया रो रहा है | इसके कष्ट दूर कीजिये | जब शिव जी और पार्वती माता जी वहाँ पहुंचे तब उन्होंने एक लड़का देखा जो अपने प्राण त्याग चुका था | वह देख पार्वती माता ने कहा की – हे ! महादेव यह तो वो ही सेठ का पुत्र है जिसे आपने वरदान दिया था |

शिव जी कहने लगे ” हे ! पार्वती इसकी आयु इतनी ही थी सो यह भोग चुका है |” पार्वती जी ने बार-बार आग्रह किया की इसे जीवन दान दे दीजिये प्रभु , फिर शिव जी की कृपा से लड़का जीवित हो गया | शिव – पार्वती कैलाश पर्वत पर चले गए |

तब वह लड़का और उसका मामा उसी प्रकार यज्ञ करते हुए तथा ब्राह्मणो को भोजन कराकर अपने स्थान की और चल पड़े | रास्ते में उसी शहर में पहुंचे जहां उस लड़के का विवाह हुआ था | वहाँ जाकर उसने यज्ञ प्रारम्भ कर दिया तो उसके ससुर ने उसे पहचान लिया | उसने फिर उनकी बहुत खातिरदारी की तथा बहुत सी दास – दासियो सहित अपनी लड़की और जमाई को विदा किया | जब वह शहर के निकट आये तो मामा ने कहा की मैं पहले घर जाकर खबर दे देता हूँ |

जब उस लड़के का मामा घर पहुंचा तो लड़के के माता-पिता घर की छत पर बैठे थे और प्रण ले रखा था की यदि उनका पुत्र सकुशल घर लौट आएगा तब ही वह राज़ी-ख़ुशी नीचे आएंगे नहीं तो छत से गिरकर अपने प्राण त्याग दे देंगे | इतने में मामाजी ने उन्हें यह समाचार दिया की आपका पुत्र सकुशल घर वापस आ गया है | पर उन दोनों को विश्वास नहीं हुआ | तब उसके मामा ने शपथपूर्वक कहा – ” आपका पुत्र अपनी पत्नी के साथ बहुत सारा धन साथ लेकर आया है |”
तब सेठ ने बड़े आनंद के साथ उसका स्वागत किया और बड़ी प्रसन्नता से साथ में रहने लगे |

इसी प्रकार से जो कोई भी सोमवार व्रत को सच्चे दिल से रखता है , अथवा सोमवार व्रत कथा सुनता या सुनाता है उसके सारे दुःख , कष्ट दूर हो जाते है और सारी मनोकामनाएं पूर्ण होती है |

हर हर महादेव !

 

 

 

 

 

 

 

 

 

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