2025 एकादशी व्रत – Let’s explore the most powerful fast ritual of Hindu Dharma !

एकादशी व्रत का महत्व :

एकादशी व्रत हिंदू चंद्र कैलेंडर के अनुसार सबसे महत्वपूर्ण अनुष्ठान है । जैसा कि हिंदू शास्त्रों में वर्णित है एकादशी व्रत लगभग 48 घंटे तक रहता है । क्योंकि एकादशी के दिन संध्या काल में व्रत शुरू होता है और एकादशी के अगले दिन सूर्य उदय होने तक जारी रहता है ।

एकादशी व्रत भगवान विष्णु की कृपा पाने के लिए करोड़ो गुना पुण्य देने वाला और समस्त पापों को नष्ट करने वाला है । हर महीने दो एकादशी तिथियां मनाई जाती है I प्रत्येक शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष में । ऐसी मान्यता है की एकादशी एक देवी थी जिनका जन्म भगवान विष्णु से हुआ था । एकादशी देवी को विष्णु कन्या भी कहा जाता है क्योंकि वह भगवान की मानस पुत्री है । इनका मनमोहन सुंदर स्वरूप है । यह सुंदर रूप वाली हाथों में शंक , चक्र , गदा और कमल पुष्प धारण करती है । ये माता पीले वस्त्र धारण करने वाली है ।

इन्हे देवी वैष्णवी और ग्यारस माता भी बोलते है । एकादशी माता का मुख्य मंदिर बद्रीनाथ में एक गुफा में बना हुआ है | इनके मंदिर काशी , हिमाचल प्रदेश और जगन्नाथ में भी मंदिर है | ग्यारस माता के नाम से इनका एक मंदिर भीलवाड़ा जिले में भी है |

Lets know 2025 Ekadashi Vrat List                                   Ekadashi Mata ki Katha

एकादशी व्रत

एकादशी व्रत की कथा :

एक दिन युधिष्ठिर ने भगवान कृष्ण से पूछा – ” एकादशी माता की उत्पत्ति कैसे हुई ? ” भगवान श्री कृष्ण जी बोलते हैं – ” हे ! कुंती नंदन , प्राचीन समय की बात है सतयुग में पृथ्वी पर अत्याचार बढ़ गया , पापाचार बढ़ गया तब एक राक्षस था मुर नाम का । वह अत्यंत दुराचारी और पापी था चारों ओर उसके पाप बढ़ने लगे । अपनी हार से पीड़ित देवता तब भगवान शिवजी की शरण में गए | वहां पहुंच कर उन्होंने अपना दुःख उनके सामने रखा |

इंद्र और अन्य देवता की दुखभरी कहानी सुनकर भगवान शिव ने उन्हें श्रीमन नारायण (भगवान विष्णु ) के पास जाने के  लिए कहा | शिवजी के कहे अनुसार सभी देवता भगवान विष्णु के पास जा पहुंचे और उन्होंने अपना दुःख प्रभु को बताया |
यह सब सुनकर भगवान विष्णु ने देवताओं को चंद्रावती नगरी जाने को कहा , उस समय वह राक्षस युद्धभूमि में दहाड़ रहा था | तब भगवान विष्णु युद्धभूमि में आये और उन्होंने उससे युद्ध किया |

यह युद्ध 10,000 वर्ष तक चला लेकिन उस राक्षस का अंत नहीं हुआ | फिर भगवान विष्णु हेमवती नामक गुफ़ा में आराम करने चले गए | यह गुफा 12 योजन लम्बी थी और उसका एक ही दरवाजा था | भगवान विष्णु वहां आराम करते हुए निद्रा में चले गए | वह राक्षस विष्णु भगवान के पीछे-पीछे वहां आ पंहुचा | वह श्री हरी को गहरी निद्रा में देखकर उनपर हमला करने की सोचने लगा | उसी समय श्री हरी के शरीर से कांतिमय रूप वाली एक देवी प्रकट हुई | उस समय मार्गशीर्ष मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि थी | इसलिए उस कन्या का नाम एकादशी हुआ |

उस कन्या का नाम एकादशी रखने का एक और कारण है वह है –
श्रीमन नारायण जी के 10 इंद्रियों और 1 मन से जो प्रकट हुई है वह कन्या का नाम है एकादशी माता ।
(पांच ज्ञानेंद्री पांच कर्मेंद्री और एक मन – भगवान के 11 तत्वों )

तब भगवान श्रीमन नारायण संकल्प लिया कि इस पापी राक्षस का उद्धार करना होगा ।
तब भगवान के निर्देशानुसार एकादशी माता ने रौद्र रूप दिखाया और सारे पाप भाग गए । एकादशी की रौद्र रूप से सारे पाप जलने लगे । सारे पाप भागकर ब्रह्मा जी के पास गए और ब्रह्मा जी से आश्रय मांगने लगे ।

ब्रह्मा जी ने उन्हें अन्न (चावल , गेहू , मक्का इत्यादि ) में छिपने की सलाह दी । एकादशी ने सारे पापों को समाप्त कर दिया पर अन्न ने पापों को जगह दे दी | तब एकादशी ने कहा की एकादशी के दिन सारे पाप अन्न में ही छिप जाते है , इसलिए मान्यता यह है की एकादशी वाले दिन हमे अन्न ग्रहण नहीं करना चाहिए | इसलिए एकादशी तिथि पर फलाहार भोजन ही करें |

जब देवी ने सब रक्षस का अंत कर दिया तो विष्णु भगवान ने एकादशी माता को कहा कि – ‘हे ! देवी मैं तुमसे प्रसन्न हूं , तुम्हें जो वर मांगना है मांगो “। तब एकादशी माता ने कहा – “हे ! मेरे प्रभु यदि आप मुझ पर प्रसन्न हैं और मुझे वरदान देना चाहते हैं तो जिस प्रकार आपने मुझसे इस पापी राक्षस को नष्ट करवाया और इस ब्रह्मांड की रक्षा करने की अनुमति दी है उसी प्रकार कृपया मुझे भी इस दिन मेरा सम्मान करने वाले किसी भी व्यक्ति के सभी बड़े पापों को मिटा कर उसे मुक्ति दिलाने की शक्ति प्रदान करें “। भगवान विष्णु ने उनकी इच्छा अनुसार उनका वरदान दिया और एकादशी व्रत सभी को रखने की महिमा कहीं |

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