शनिवार व्रत – In 2025 Fasting on Saturday will fulfill all your wishes !

शनिवार व्रत धारण करने की विधि और महत्व :

शनिवार व्रत के दिन शनि की पूजा होती है । शनिवार व्रत को काला तिल ,काले वस्त्र , तेल ,उड़द ,शनि को प्रिय है । इसलिए इनके द्वारा शनि की पूजा होती है । शनि की दशा को दूर करने के लिए यह व्रत किया जाता है । शनि स्तोत्र का पाठ भी विशेष लाभदायक सिद्ध होता है ।

शनिवार व्रत

शनिवार व्रत की कथा :

एक समय सूर्य ,चंद्रमा ,मंगल ,बुद्ध ,बृहस्पति ,शुक्र शनि ,राहु और केतु इन सभी ग्रहों में आपस में झगड़ा हो गया ,कि हम सब में सबसे बड़ा कौन है ? सब अपने आप को बड़ा कहते थे जब आपस में कोई निर्णय न हो सका तो सब के सब आपस में झगड़ते हुए इंद्र के पास गए और कहने लगे – ” आप देवताओं के राजा हैं । इसलिए आप हमारा न्याय कीजिए और हमें बताइए कि हम सब में से सबसे बड़ा कौन है ? ” राजा इंद्र उनके प्रश्न सुनकर घबरा गए और कहने लगे – ” मुझ में यह सामर्थ्य नहीं है जो किसी को बड़ा या छोटा बताऊं ।

मैं अपने मुख से कुछ नहीं कह सकता हूं । हां , एक उपाय हो सकता है । इस समय पृथ्वी पर राजा विक्रमादित्य दूसरों के दुखों का निवारण करने वाले हैं । इसलिए तुम सब मिलकर उन्हें के पास जाओ । वही तुम्हारे दुखों का निवारण करेंगे । ” यह सुनकर सभी ग्रह देवता चलकर भूलोक में राजा विक्रमादित्य की सभा में जाकर उपस्थित हुए और अपना प्रश्न राजा के सामने रखा ।

राजा उनकी बात सुनकर बड़ी चिंता में पड़ गए कि मैं अपने मुख से किसको बड़ा और किसको छोटा बताऊं । जिसको छोटा बताऊंगा वही क्रोध करेगा , परंतु उनका झगड़ा निपटने के लिए उन्होंने एक उपाय सोचा की सोना , चांदी , कांसा , ,पीतल , सीसा , रांगा , जस्ता , अभ्र्क और लोहा नवो धातुओं के नौ आसन बनवाए । सब आसनों को क्रम से जैसे सोना सबसे पहले और लोहा सबसे बाद में बिछाए ।

इसके बाद राजा ने सब ग्रहों से कहा – ” आप सब अपने-अपने आसन पर बैठिए । जिसका आसन सबसे आगे है वह सबसे बड़े और जिसका आसन सबसे पीछे है वह सबसे छोटा जानिए । ” क्योंकि लोहा सबसे पीछे था और वह शनिदेव का आसान था इसलिए शनिदेव ने समझ लिया की राजा ने मुझको छोटा बना दिया है । “

इस पर शनिदेव को बड़ा क्रोध आया और कहा – ” राजा ! तू मेरे पराक्रम को नहीं जानता । सूर्य एक राशि पर एक महीना , चंद्रमा सवा दो दिन , मंगल डेढ़ महीना , बृहस्पति 13 महीने , बुध और शुक्र एक महीने परंतु मैं एक राशि पर ढाई अथवा 7:30 साल तक रहता हूं । बड़े-बड़े देवताओं को भी मैं भीषण दुख दिया है ।

राजन ! सुनो , राम जी को साढ़े साती आई तो वनवास हो गया और रावण पर आई तो राम और लक्ष्मण ने सेना लेकर लंका पर चढ़ाई कर दी । रावण कल का नाश कर दिया । हे राजा ! अब तुम सावधान रहना । ” राज कहने लगा – ” जो भाग्य में होगा देखा जाएगा । ” उसके बाद अन्य ग्रह तो प्रसन्नता  से चले गए परंतु शनि देव बड़े क्रोध के साथ वहां से गए ।

कुछ कल व्यतीत होने पर जब राजा को साढ़े साती की दशा आई तो शनि देव घोड़ा के सौदागर बनाकर अनेक सुंदर घोड़े के सहित राजा की राजधानी में आए । जब राजा ने सौदागर के आने की खबर सुनी तो अपने अश्वपाल को अच्छे-अच्छे घोड़े खरीदने की आज्ञा दी । आसपाल ऐसी अच्छी नस्ल के घोड़े देखकर उनका मूल्य सुनकर चकित हो गया और तुरंत ही राजा को खबर दी ।

राजा उन घोड़े को देखकर एक अच्छा सा घोड़ा चुनकर सवारी के लिए चढ़ा । राजा के घोड़े की पीठ पर चढ़ते ही घोड़ा जोर से भागा । घोड़ा बहुत दूर एक जंगल में जाकर आ जाओ को छोड़कर अंतर्ध्यान हो गया । इसके बाद राजा अकेला जंगल में भटकता फिरता रहा ।

। बहुत देर के बाद राजा ने भूख और प्यास से दुखी होकर भटकते भटकते एक ग्वाले को दिखा । ग्वाले ने राजा को प्यार से व्याकुल देखकर पानी पिलाया । राजा की अंगुली में एक अंगूठी थी । राजा ने वह अंगूठी निकालकर प्रसन्नता से ग्वाले को दे दी और शहर की ओर चल दिया । राजा शहर में पहुंचकर एक सेठ की दुकान पर जाकर बैठ गया और अपने आप को उज्जैन का रहने वाला तथा अपना नाम वीका बताया ।

सेठ ने उसको एक साधारण मनुष्य समझ कर जल आदि पिलाया । भाग्यवश उस दिन सेठ की दुकान पर बिक्री बहुत अधिक हुई । तब सेठ उसको भगवान पुरुष समझकर भोजन करने के लिए अपने साथ ले गया । भोजन करते समय राजा ने आश्चर्य की बात देखी कि खूंटी पर हार लटक रहा था और वह खूंटी उस हार को निगल गयी ।

भोजन के बाद कमरे में आने पर जब सेठ को कमरे में हार ना मिला तो सब ने यही निश्चय किया कि सिवाय वीका के और कोई कमरे में नहीं आया । अतः अवश्य ही उसी ने हार चोरी किया है । परंतु वीका ने कहा – ” हार मैंने नहीं लिया है । ” इस पर 5-7 आदमी इकट्ठे होकर उसको फौजदार के पास ले गए ।

इस प्रकार कुछ काल व्यतीत होने पर एक तेली उसको अपने घर ले गया और कोल्हू पर बैठा दिया । वीका उस पर बैठा हुआ अपनी जुबान से बैल हांकता रहा । शनि की दशा समाप्त हुई और एक रात को वर्षा ऋतु के समय वह मल्हार राग गाने लगा । उसका गाना सुनकर उसे शहर के राजा की कन्या उसे रात पर मोहित हो गई और दासी को खबर लाने को भेजो कि शहर में कौन गा रहा है ।

दासी सारे शहर में फिरती फिरती क्या देखती है कि तेली के घर चौरंगिया राग गा रहा है । दासी ने महल में आकर राजकुमारी को सारा वृत्तांत बताया । इस शरण राजकुमारी ने अपने मन में यह प्रण लिया कि चाहे कुछ हो जाए मुझे उसे चौरंगिया के साथ विवाह करना है । प्रात : काल होते ही जब दासी ने राजकुमारी को जगाना चाहा तो राजकुमारी अनशन व्रत लेकर पड़ी रही ।

तब दासी ने रानी के पास जाकर राजकुमारी के ना उठने का वृतांत कहा । रानी ने तुरंत ही वहां जाकर राजकुमारी को जगाया और उसके दुख का कारण पूछा तो राजकुमारी ने कहा -” मां ! मैंने यह प्रण लिया है की तेली के घर में जो चौरंगिया है उसी के साथ विवाह करूंगी । ” माता ने कहा -” पगली ! यह क्या बात कर रही है ? तेरा किसी देश के राजा के साथ विवाह किया जाएगा । “

राजकुमारी कहने लगी – ” मां ! मैं अपना प्रण कभी नहीं तोडूंगी । ” पर माता ने चिंतित होकर यह बात राजा को बताई । तब राजा ने भी आकर समझाया परंतु उसने राजा की एक न सुनी । क्रोधित होकर राजा ने कहा – ”  यदि तेरे भाग्य में ऐसा ही लिखा है तो जैसी तेरी इच्छा हो वैसा ही कर । “

राजा इ तेली को बुलाकर कहा – ” तेरे घर में चौरंगिया है उसके साथ मैं अपनी कन्या का विवाह करना चाहता हूँ । ” तेली ने कहा – ” यह कैसे हो सकता है ? कहां आप हमारे राजा और कहां मैं नीचे तेली ? ” परंतु राजा ने कहा – ” भाग्य के लिखे को कोई नहीं टाल सकता । अपने घर जाकर विवाह की तैयारी करो । ” राजा ने इस समय तोरण और बंदनवार लगवाकर अपनी राजकुमारी का विवाह विक्रम आदित्य के साथ कर दिया ।

रात्रि को जब विक्रम आदित्य और राजकुमारी महल में सोए तो आधी रात के समय शनि देव ने विक्रमादित्य को स्वप्न दिया -” राजा ! कहो मुझको छोटा बाटला कर तुमने कितना दुख उठाया ? ” राजा ने क्षमा मांगी । शनिदेव ने प्रश्न होकर विक्रम आदित्य को हाथ पैर दिए ।

राजा ने कहा -” महाराज ! मेरी प्रार्थना स्वीकार करें की जैसा दुख आपने मुझे दिया है ऐसा किसी और को ना दे । ” शनिदेव ने कहा – ” तुम्हारी यह प्रार्थना स्वीकार है । जो मनुष्य मेरी कथा सुनेगा या रहेगा उसको मेरी दशा में कभी किसी प्रकार का दुख नहीं होगा । और जो लिखते ही मेरा ध्यान करेगा या चीटियों को आटा डालेगा उसके सब मनोरथ पूर्ण होंगे । ” इतना कहकर शनि महाराज अपने धाम चले गए ।

राजकुमारी की आंख खुली और उसने राजा के हाथ-पाँव देखे तो उसे बड़ा आश्चर्य हुआ । उसको देखकर राजा ने अपना समस्त हाल कहा – ” मैं उज्जैन का राजा विक्रमादित्य हूं । ” यह बात सुनकर राजकुमारी अत्यंत प्रसन्न हुई । प्रातः काल राजकुमारी से उसकी सखियों से ने पूछा तो उसने अपने पति का सारा वृत्तांत कह सुनाया । तब सपना प्रसन्नता प्रकट की और कहा – ” ईश्वर ने आपकी मनोकामना पूर्ण कर दी ।”

जब उसे सेठ ने यह सुन तो वह विक्रम आदित्य के पास आया और राजा विक्रमादित्य के पैरों पर गिरकर क्षमा मांगने लगा और कहने लगा -“मैंने आप पर झूठा आरोप लगाया है आप मुझको दंड दीजिए । ” राजा ने कहा – ” मुझ पर शनिदेव का कोप था । इसी कारण यह सब दुख मुझको प्राप्त हुआ । इसमें तुम्हारा कोई दोष नहीं है , तुम अपने घर जाओ और अपना कार्य करो । ” सेठ बोला – ” मुझे तभी शांति मिलेगी जब आप मेरे घर चलकर प्रीति पूर्वक भोजन करेंगे । “

सेठ के आगरा करने पर राजा सेठ के घर भोजन करने चले गए । जिस समय में भोजन कर रहे थे एक अत्यंत आश्चर्य की बात सबको दिखाई दी । जो खूंटी पहले हार निगल गयी थी वह अब हार उगल रही है । जब भोजन समाप्त हो गया तो सेट ने हाथ जोड़कर बहुत सी मोहरे राजा को भेंट की और कहा – ” मेरे श्रीकंवरी नाम की एक कन्या है , उसका पाणिग्रहण आप करें । इसके बाद सेठ ने अपनी कन्या का विवाह राजा के साथ कर दिया और बहुत सा दान दहेज आदि दिया ।

इस प्रकार कुछ दिनों तक वहां निवास करने के बाद विक्रमादित्य ने शहर के राजा से कहा – ” अब मेरी इच्छा उज्जैन जाने की है । ” फिर कुछ दिन के बाद वीजा लेकर राजकुमारी मनभावनी , सेठ की कन्या श्रीकंवरी तथा अनेक दास-दासी , रथ और पालकियों सहित विक्रम आदित्य उज्जैन की तरफ चले । जब शहर के निकट पहुंचे और पुरवासियों ने राजा के आने का समाचार सुना तो समस्त उज्जैन की प्रजा अगवानी के लिए आई ।

तब बड़ी प्रसन्नता से राजा अपने महल में पधारे । सारे शहर में बहुत बड़ा महोत्सव मनाया गया । और रात्रि को दीपमाला की गई । दूसरे दिन राजा ने शहर में यह घोषणा कराई – ” शनि देवता सब ग्रहों में सर्वोपरि है । मैंने इनको छोटा बताया था । इसलिए मुझको यह दुख प्राप्त हुआ । ” इस कारण सारे शहर में सदा शनि देव की पूजा और कथा होने लगी । राजा और प्रजा अनेक प्रकार के सुख भोगते रहे ।

जो कोई शनिदेव की इस कथा को पढ़ना या सुनता है उसके शनि देव की कृपा से सब दुख दूर हो जाते हैं । शनिवार की कथा को शनिवार व्रत के दिन अवश्य पढ़ना चाहिए ।

 

 

 

 

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