सकट चौथ 2025 – Let’s take blessings of Lord Ganesha and know about his Divine Day on this auspicious day of Chaturthi

सकट चौथ 2025 पूजा विधि एवं समय  :

सकट चौथ यानी कि संकटों को दूर करने वाली गणेश चतुर्थी। इस दिन व्रत करने से विघ्‍नहर्ता और संकटों को दूर करने वाले भगवान गणेशजी प्रसन्‍न होते हैं और आपके सभी कष्‍टों को दूर करते हैं।

माघ कृष्ण पक्ष की चौथ को गणेश चौथ  का व्रत होता है | इसे संकट चतुर्थी या सकट चौथ कहते है |

सुबह सबसे पहले सिर सहित नहाएं , मेहँदी लगाए और सफ़ेद टिल और गुड़ का तिलकुट बनाये | एक पट्टे पर जल का लौटा , चावल , रोली , एक कटोरी में तिलकुट और रुपये रखकर जल के लौटे पर सतिया बनाकर तेरह टिक्की करे और चौथ व विनायक जी की कहानी सुनें | तब थोड़ा सा तिलकुट ले लें | कहानी सुनने के बाद एक कटोरी में तिलकुट और रुपये रखकर हाथ फेरकर सासुजी के पैर छूकर दे दें | जल का लौटा और हाथ में तिल उठाकर रख दें | शाम को चंद्रमा को अर्घ्य देकर जीम लें | एक रुपया और तिलकुट जो मिसरानी कहानी कहे उसे दे दें | जब खाना खाये तो तिलकुट जरूर खाये |

सकट चौथ 2025 पूजा समय :

17 जनवरी 2025, शुक्रवार को सकट चौथ
सकट चौथ के दिन चंद्रोदय – रात्रि 09:09 बजे
चतुर्थी तिथि प्रारंभ – 17 जनवरी 2025 को प्रातः 04:06 बजे से
चतुर्थी तिथि समाप्त – 18 जनवरी 2025 को प्रातः 05:30 बजे

सकट चौथ

सकट चौथ 2025 महत्व :

इस व्रत को महिलाये अपने घर की सुख शांति और अपनी संतान के लिए रखती है | यह मान्यता है की इस व्रत को रखने से संतान दीर्घायु होती है | इस जिन से जुड़ी एक मान्यता यह भी है की गणेश जी को तिल और गुड़ से बनी चीजों का भोग लगाया जाता है |

सकट चौथ व्रत कथा :

एक बार विपदा ग्रस्त देवता लोग भगवान शंकर के पास गए । उस समय भगवान शिव के साथ उनके दोनों पुत्र कार्तिकेय तथा गणेश श्री विराजमान थे । शिव जी ने दोनों बालकों से पूछा तुम में से कौन ऐसा वीर है जो देवताओं का कष्ट निवारण करें । तब कार्तिकेय ने अपने को देवताओं का सेनापति प्रमाणित करते हुए देव रक्षा योग्य , तथा सर्वोच्च देव पद मिलने का अधिकारी सिद्ध किया । इस बात पर शिव जी ने गणेश जी की इच्छा जानी चाही । तब गणेश जी ने विनम्र भाव से कहा कि पिताजी आपकी आज्ञा हो तो मैं बिना सेनापति बने ही सब संकट दूर कर सकता हूं ।

यह सुनते ही शिव जी ने अपने दोनों पुत्रों को पृथ्वी की परिक्रमा करने को कहा तथा यह शर्त रखी की जो सबसे पहले पूरी पृथ्वी की परिक्रमा करके आ जाएगा वही वीर तथा सर्वश्रेष्ठ देवता घोषित किया जाएगा । यह सुनते ही कार्तिकेय बड़े गर्व से अपने वाहन मोर पर चढ़कर पृथ्वी की परिक्रमा करने चले गए । गणेश जी ने समझा चूहे के बल पर पूरी पृथ्वी का चक्कर लगाना अत्यंत कठिन है , इसलिए उन्होंने अपने माता-पिता की सात बार परिक्रमा कर ली । रास्ते में कार्तिकेय को पूरी पृथ्वी मंडल में उनके आगे चूहे का पद दिखाई दिया ।

परिक्रमा करके लौटने पर निर्णय की बारी आई , कार्तिकेय जी गणेश पर कीचड़ उछलना लगे तथा अपने को पूरे भूमंडल का एकमात्र पर्यटक बताया । इस पर गणेश जी ने शिवजी से कहा कि माता-पिता में ही समस्त तीर्थ स्थान निहित है इसलिए मैंने आपकी सात बार परिक्रमाएं की हैं ।
गणेश जी की इस बात को सुनकर समस्त देवगणों तथा कार्तिकेय ने सर झुका लिया । तब शंकर जी ने गणेश जी की प्रशंसा की तथा आशीर्वाद दिया कि त्रिलोक में सर्वप्रथम तुम्हारी पूजा होगी । तब गणेश जी ने पिता की आज्ञा अनुसार जाकर देवताओं का संकट दूर किया ।

यह शुभ समाचार जानकर भगवान शंकर ने यह बताया कि चौथ के दिन चंद्रमा तुम्हारे मस्तक का सेहरा (ताज) बनाकर पूरे विश्व को शीतलता प्रदान करेगा । जो स्त्री पुरुष स्थिति पर तुम्हारा पूजन तथा चंद्र अर्घ्यदान देगा उसका त्रिबिध ताप ( दैहिक , दैविक , भौतिक ) दूर होगा और ऐश्वर्य , पुत्र , सौभाग्य को प्राप्त करेगा । यह सुनकर देवगण हर्ष से प्रणाम कर अंतर्धान हो गए ।


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