बासौड़ा पर्व का महत्व और मान्यता :
यह त्यौहार होली के 7- 8 दिन के बाद आता है अर्थात चैत्र मास की कृष्ण पक्ष में प्रथम सोमवार या बृहस्पतिवार को मनाया जाता है । बासौड़ा को शीतला अष्टमी भी कहते हैं क्योंकि इस दिन शीतला माता की पूजा करने का विधान है । यह त्यौहार विशेष तौर से राजस्थान और उत्तर भारत के कुछ हिस्सों में मनाया जाता है । गुजरात में बासौड़ा जैसा ही अनुष्ठान कृष्ण जन्माष्टमी से ठीक एक दिन पहले मनाया जाता है और इसे शीतला सातम के नाम से जाना जाता है।
बासौड़ा यानी शीतला अष्टमी पर शीतला माता को बासी खाने का भोग लगता है । चैत्र मास में शीतला देवी की पूजा व्रत विशेष रूप से की जाती है ।
इस व्रत में एक दिन पहले बनाया हुआ भोजन किया जाता है , इसलिए इस दिन को बासोड़ा , बसियौरा व बसोरा भी कहा जाता है ।
मान्यता है कि देवी शीतला की पूजा से शीतजन्य रोग जैसे चेचक , खसरा , फोड़े , फुंसी आदि नहीं होते हैं ।
आईये जानते है शीतला अष्टमी 2025 में कब है ?
22 मार्च 2025, शनिवार को शीतला अष्टमी
शीतला अष्टमी पूजा मुहूर्त – सुबह 06:23 बजे से शाम 06:33 बजे तक
अवधि – 12 घंटे 11 मिनट
21 मार्च 2025, शुक्रवार को शीतला सप्तमी
शीतला अष्टमी 2025 पूजा विधि :
शीतला अष्टमी के एक दिन पहले मीठी भात , चूरमा , नमक पारे , शक्करपारे , गुड़ के पूड़े , बेसन की चकली , पकौड़ी , बाजरे की रोटी , राबड़ी , पूरी और सब्जी आदि बना ले । इनमें से कुछ भी पूजा से पहले नहीं खाना चाहिए । शीतलाष्टमी से एक दिन पहले रात को सारा भोजन बनाने के बाद रसोई घर की साफ सफाई करके पूजा करें । इस पूजा के बाद चूल्हा नहीं जलाया जाता है ।
शीतला अष्टमी के एक दिन पहले नौ कंदवारे , एक कुल्हड़ और एक दीपक मंगवा ले । सुबह जल्दी उठकर ठंडे पानी से नहाए । एक थाली में कंदवारे भरे । उनमे थोड़ा दही , राबड़ी , चावल , पकौड़ी , नमकपारे , रोटी , शककरपरे , भीगा मौठ , बाजरा आदि पकवान जो बनाये है उन्हें रखे । एक अन्य थाली में रोली , चावल , मेहँदी , काजल , हल्दी , मौली , वस्त्र और कुछ रूपये रखे । शीतल जल का कलश भर कर रखें ।
आटे का दीपक बनाये और इस दीपक में रोई की बत्ती घी में डुबोकर लगा दे । यह दीपक बिना जलाये ही माता जी को चढ़ाया जाता है ।
पूजा के लिए साफ-सुथरी और सुंदर वस्त्र पहनना चाहिए । जो पूजा की दो थालिया निकाली है उस पर रौली और हल्दी से तिलक करे । और उस तिलक को स्वयं भी लगाए तथा घर के सारे सदस्यों को भी तिलक करे ।
हाथ जोड़कर माता से प्रार्थना करे – हे ! माता हमारी पूजा स्वीकार करना और ठंडी रहना | इसके बाद मंदिर में जाकर पूजा करें | सबसे पहले माता जी को जल से स्न्नान कराये | रौली और हल्दी से माता का टीका करें | श्रृंगार का सामान अर्पित करें | पूजन सामग्री अर्पित करें | (बड़कुल्ले ) की माला जो होली के दिन मालाये बनायीं जाती है , बिना दीपक जलाये अर्पित करें | आरती या गीत आदि गाकर माता की अर्चना करें |
पूजन के बाद शीतला माता की कहानी सुने | अंत में वापिस जल चढ़ाये और जो जल बाद में बचता हैं उसमे से थोड़ा सा जल लौटे में डाल ले और घर ले जाकर घर के सभी हिस्से में छिड़काव करें | इससे घर की शुद्धि होती है | बचा हुआ सारा समान गाय को या ब्राह्मणी को दे सकते है |
शीतला अष्टमी 2025 की कथा :
एक बार की बात है माता शीतला ने सोचा , चलो देखते हैं पृथ्वी पर मेरी पूजा कौन-कौन करता है , और कहां-कहां मुझे मानता है ? यह सोचकर शीतला माता बुढ़िया के भेष में राजस्थान के एक गांव डूंगरी में जा पहुंची । माँ वहां चारो और घूमती रही लेकिन उन्हें कहीं भी उनका एक मंदिर तक नहीं दिखा और ना ही कोई ऐसा व्यक्ति जो उनकी पूजा करता था । इस तरह गांव की एक गली से होकर मां शीतला जा रही थी , तभी अचानक किसी ने उनके शरीर पर चावलों का गरम-गरम उबला हुआ पानी फेंक दिया । जिसके कारण शीतला माता का शरीर जलने लगा और उनके शरीर पर फफोले पड़ गए ।
शीतला माता का पूरा शरीर जलने लगा ,वो गांव में इधर-उधर भटकने लगी और कहने लगी- “अरे मैं जल गई , मेरा सारा शरीर जल रहा है कोई मेंरी मदद करो ” ,लेकिन गांव में किसी ने भी माता की मदद नहीं करी । अपने घर के बाहर एक कुम्हारन बैठी थी उसने देखा कि वह बूढी माई बहुत जल गई है उनके शरीर पर फफोले पड़ गए हैं और वह अपने शरीर की तपन को सहन नहीं कर पा रही तब वह कुम्हारन बोली – ” माँ तुम यहां आकर बैठ जाओ , मैं तुम्हारे शरीर पर ठंडा पानी डालती हूं | ”
तब कुम्हारन ने एक करवे से ठंडा-ठंडा पानी डाला और बोली – ” मां ! मेरे घर में कल की राबड़ी और ठंडी रोटी-सब्जी रखी है , वह खालो । ” माँ ने बासी खाना खाया तब उनके शरीर को ठंडक मिली ।
तब वह बोली – ” मेरे सिर में जुएं देख दें । ” तब कुम्हारन उनका सिर देखने लगी और माता के सिर से जुएं निकालने लगी , तब उसने देखा की उनके सिर के पीछे भी एक आँख है , जिसे देखकर कुम्हारन डर गयी और वहां से भागने लगी । तब माँ बोली – ” रुक बेटी , डर मत , मैं कोई पिशाचनी नहीं हूँ , मैं शीतला माता हूँ । तब माता ने अपना असली रूप धारण कर लिया । माता के दर्शन कर वह रोने लगी ।
माता बोली – ” तू क्यों रो रही है ” ? कुम्हारन बोली – ” माता मेरे घर में चारों तरफ दरिद्रता है , मैं तुम्हें कहां बिठाऊ ” ?
शीतला माता प्रसन्न होकर उसके घर के बाहर आकर गधे पर बैठ गई , और एक हाथ में झाड़ू और दूसरे हाथ में डलिया लेकर उन्होंने झाड़ू से कुम्हारन के घर की दरिद्रता को झाड़ कर डलिए में भरकर फेंक दिया ।
और बोली – ” बेटी मैं तेरी सच्ची भक्ति से प्रसन्न हूं , अब तुझे जो भी वर चाहिए मुझसे मांग ले । ” तब कुम्हारन हाथ जोड़कर बोली – ” माता आप इस गांव में स्थित होकर रहिए , जिस प्रकार मेरे घर की दरिद्रता आपने दूर करी है , वैसे ही जो भी व्यक्ति फाल्गुन मास की अष्टमी पर भक्ति-भाव से आपकी पूजा करें और आपको ठंडा जल और ठंडे भोजन का भोग लगाए , उसके घर की दरिद्रता आप स्वयं दूर करें । ”
माता ने उसे तथास्तु ! कहा और बोली – ” तू इस करवे का जल अपनी झोपड़ी पर छिड़क लेना , कल सारे नगर में आग लगेगी लेकिन तेरी झोपड़ी नहीं जलेगी । ” ऐसा कहकर माता अंतर्धान हो गई ।
कुम्हारन ने ऐसा ही किया । रात हुई तो सारी नगरी में आग लग गई । पर उसकी झोपड़ी बच गई । यह देख नगर के राजा ने कुम्हारन को बुलवाया और उससे इसका कारण पूछने लगे ।
इस पर कुम्हारन ने राजा को शीतला माता की सारी बात बता दी और बोली – ” मुझ पर शीतला माता की कृपा हुई है । ” उस दिन से राजा ने पूरे नगर में एलान करवा दिया कि अब से शीतला अष्टमी के दिन किसी भी घर में चूल्हा नहीं जलेगा और हर घर में शीतला माता को बासी भोजन का भोग लगेगा ।
हे ! शीतला माता जैसे कृपा आपने उस कुम्हारन पर करी , ऐसी कृपा हम सब पर करना ।
बासौड़ा की पूजा में भूलकर भी ना करें यह 3 गलतियां :
- शीतला माता को हमेशा ठंडा खाने का भोग ही लगाया जाता है ।
- शीतला माता की पूजा में दीया , धूप , या अगरबत्ती नहीं जलाई जाती ।
- माता शीतला की पूजा में अग्नि को किसी भी तरह से शामिल नहीं करना चाहिए ।
शीतला अष्टमी के लिए शीतला माता के विशेष मंत्र :
- शीतले त्वं जगन्माता शीतले त्वं जगत्पिता। शीतले त्वं जगद्धात्री शीतलायै नमो नमः
- ॐ ह्रीं श्रीं शीतलायै नमः
- वन्देऽहंशीतलांदेवीं रासभस्थांदिगम्बराम्