रमा एकादशी 2025 : Know about Date/ Time / Significance and of powerful effects of Rama Ekadashi !

रमा एकादशी 2025 महत्व एवं पूजा विधि :

रमा एकादशी व्रत कार्तिक कृष्ण पक्ष की एकादशी को किया जाता है । इस दिन भगवान केशव का संपूर्ण वस्तुओं से पूजन होता है | पूजन के बाद कथा अवश्य पढ़े | उसके पश्चात केशव की नैवेद्य तथा आरती कर प्रसाद वितरित करके ब्राह्मणों को खिलाएं तथा दक्षिणा बांटे । कहा जाता है की इस दिन पुण्य करने से बड़े लाभ की प्राप्ति होती है |

जो मनुष्य रमा एकादशी के व्रत को करते हैं उनके समस्त दोष , ब्रह्म हत्या इत्यादि के पाप नष्ट हो जाते हैं तथा अंत में विष्णु लोक को जाते हैं ।

रमा एकादशी की पूजा विधि :

  • यदि आप एकादशी का व्रत रख रहे है तो एकादशी से एक दिन पहले सूर्यास्त के बाद भोजन न करें |
  • एकादशी के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठे |
  • जल्दी उठकर स्नान आदि करके व्रत करने का संकल्प लें और सूर्यदेव को जल अर्पित करें |
  • इस दिन चौकी पर पीला वस्त्र बिछाएं और भगवान विष्णु और माँ लक्ष्मी की प्रतिमा विराजमान करें |
  • उनका अभिषेक करें और घी का दीपक जलाएं उन्हें चंदन , फूल , फल अथवा तुलसी अप्रीत करें |
  • अब भगवान विष्णु के सामने संबंधित मंत्रों (“ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः”) का जाप कर भगवान को केले या फलाहार और तुलसी का भोग लगाए |
  • इस व्रत वाले दिन गरीब ब्राह्मण को दान देना परम श्रेयस्कर है ।

रमा एकादशी 2025 पारण :

शुक्रवार, 17 अक्टूबर 2025 को रमा एकादशी
18 अक्टूबर को पारण का समय – प्रातः 06:25 बजे से प्रातः 08:40 बजे तक
पारण दिवस द्वादशी समाप्ति क्षण – दोपहर 12:18 बजे
एकादशी तिथि आरंभ – 16 अक्टूबर, 2025 को सुबह 10:35 बजे
एकादशी तिथि समाप्त – 17 अक्टूबर, 2025 को सुबह 11:10 बजे

जब व्रत पूरा हो जाता है और व्रत को तोड़ा जाता है उसे पारण कहते है । एकादशी व्रत के अगले दिन सूर्योदय के बाद एकादशी का पारण किया जाता है। पारण द्वादशी तिथि के भीतर करना आवश्यक होता है ,जब तक कि द्वादशी सूर्योदय से पहले समाप्त न हो जाए। द्वादशी के भीतर पारण न करना अपराध के समान माना जाता है |

हरि वासर के दौरान पारण नहीं करना चाहिए। व्रत तोड़ने से पहले हरि वासर खत्म होने का इंतजार करना चाहिए। हरि वासर द्वादशी तिथि की पहली एक चौथाई अवधि है। संस्कृत की प्राचीन भाषा में, हरि वासर को भगवान विष्णु से संबंधित दिव्य समय के रूप में प्रतिध्वनित किया जाता है (हरि: विष्णु का एक विशेषण; वासर: ब्रह्मांडीय घंटा)। एकादशी तिथि के दौरान, पवित्र हरि वासर प्रकट होता है, जो भगवान विष्णु की पूजा के लिए समर्पित है।
व्रत तोड़ने का सबसे पसंदीदा समय प्रातःकाल है। मध्याह्न के दौरान व्रत तोड़ने से बचना चाहिए। यदि किसी कारणवश कोई व्यक्ति प्रातःकाल में व्रत नहीं खोल पाता है तो उसे मध्याह्न के बाद व्रत करना चाहिए।

कभी-कभी लगातार दो दिनों तक एकादशी व्रत रखने का सुझाव दिया जाता है। यह सलाह दी जाती है कि समर्था को परिवार सहित केवल पहले दिन उपवास करना चाहिए। जब स्मार्थ के लिए वैकल्पिक एकादशियों के उपवास का सुझाव दिया जाता है तो यह वैष्णव एकादशियों के उपवास के दिन के साथ मेल खाता है।

भगवान विष्णु के प्रेम और स्नेह की तलाश करने वाले कट्टर भक्तों को दोनों दिन एकादशियों का उपवास करने का सुझाव दिया जाता है |

रमा एकादशी

रमा एकादशी व्रत कथा :

एक समय मुचकुन्द नाम का दानी , धर्मात्मा राजा राज्य करता था । उसे ” एकादशी ” व्रत का पूरा विश्वास था ।
इससे वह प्रत्येक एकादशी को व्रत करता था तथा राज्य की प्रजा पर भी यही नियम लागू करता था ।

उसके चंद्रभागा नाम के कन्या थी । वह भी पिता से अधिक इस व्रत पर विश्वास करती थी ।

उसका विवाह राजा चंद्रसेन के पुत्र शोभन के साथ हुआ , जो राजा मुचकुन्द के साथ ही रहता था । एकादशी के दिन सभी व्यक्तियों ने व्रत किया । शोभन , ने भी व्रत किया , किंतु अत्यंत कमजोर होने से भूख से व्याकुल हो वह मृत्यु को प्राप्त हो गया । इससे राजा रानी और पुत्री अत्यंत दुखी हुए ।

शोभन को व्रत के प्रभाव से मंदरांचल पर्वत पर धन-धान्य से युक्त एवं शत्रु से रहित एक उत्तम देवनगर में आवास मिला था । वहां उसकी सेवा में रंभा आदि अप्सराएं भी शामिल थी ।

अचानक एक दिन राजा मुचकुन्द मंदरांचल पर्वत पर टहलने गए , वहां पर वह अपने दामाद को देखकर हैरान रह गए । उन्होंने घर वापस आकर यह सारा वृत्तांत अपनी पुत्री को बताया । पुत्री अपने पति का यह समाचार सुनकर खुश हो गई और अपने पति के पास चली गई ।
वहां वह दोनों सुख से जीवन व्यतीत करने लगे तथा रंभादि अप्सराओं से सीमित निवास करने लगे ।

 

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