मोक्षदा एकादशी 2025 महत्व एवं पूजा विधि :
मार्गशीर्ष मास के शुल्क पक्ष की एकादशी “ मोक्षदा एकादशी ” कहलाती है । इस इन दामोदर भगवान (श्री कृष्ण ) की पूजा की जाती है । दामोदर भगवान की पूजा धुप , दीप , नैवेद्य आदि पूजा – पदार्थो से करनी चाहिए और भक्तिपूर्वक दामोदर भगवान का कीर्तन और जागरण करना चाहिए । इस दिन एकादशी व्रत कथा भी अवश्य पढ़े |
यह एकादशी मोक्ष प्रदायिनी है | इस दिन द्वापर युग में यानि 5000 वर्षों से भी अधिक वर्ष पहले भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को सनातन ज्ञान धर्म क्षेत्र ” कुरुक्षेत्र ” में श्रीमद्द भगवद्गीता के रूप में सुनाया था , इसलिए मोक्षदा एकादशी को ” गीता जयंती ” भी कहा जाता है |
मोक्षदा एकादशी की पूजा विधि :
- यदि आप एकादशी का व्रत रख रहे है तो एकादशी से एक दिन पहले सूर्यास्त के बाद भोजन न करें |
- एकादशी के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठे |
- जल्दी उठकर स्नान आदि करके व्रत करने का संकल्प लें और सूर्यदेव को जल अर्पित करें |
- इस दिन चौकी पर पीला वस्त्र बिछाएं और भगवान विष्णु और माँ लक्ष्मी की प्रतिमा विराजमान करें |
- उनका शंक से जल अभिषेक करें और घी का दीपक जलाएं उन्हें चंदन , फूल , फल , हो सके तो पीली मिठाई अथवा तुलसी अर्पित करें |
- इस दिन पीपल के पेड़ में जल अर्पित करना भी शुभ मन जाता है |
- अब भगवान विष्णु के सामने संबंधित मंत्रों (“ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः”) का जाप कर भगवान को केले या फलाहार और तुलसी का भोग लगाए |
- इस व्रत वाले दिन गरीब ब्राह्मण को दान देना परम श्रेयस्कर है ।
मोक्षदा एकादशी 2025 पारण :
1 दिसंबर 2025, सोमवार को मोक्षदा एकादशी
2 दिसंबर को पारण का समय – सुबह 06:57 बजे से सुबह 09:03 बजे तक
पारण दिवस द्वादशी समाप्ति क्षण – 03:57 अपराह्न
एकादशी तिथि प्रारंभ – 30 नवंबर 2025 को रात्रि 09:29 बजे से
एकादशी तिथि समाप्त – 01 दिसंबर, 2025 को शाम 07:01 बजे
जब व्रत पूरा हो जाता है और व्रत को तोड़ा जाता है उसे पारण कहते है । एकादशी व्रत के अगले दिन सूर्योदय के बाद एकादशी का पारण किया जाता है। पारण द्वादशी तिथि के भीतर करना आवश्यक होता है ,जब तक कि द्वादशी सूर्योदय से पहले समाप्त न हो जाए। द्वादशी के भीतर पारण न करना अपराध के समान माना जाता है |
हरि वासर के दौरान पारण नहीं करना चाहिए। व्रत तोड़ने से पहले हरि वासर खत्म होने का इंतजार करना चाहिए। हरि वासर द्वादशी तिथि की पहली एक चौथाई अवधि है। संस्कृत की प्राचीन भाषा में, हरि वासर को भगवान विष्णु से संबंधित दिव्य समय के रूप में प्रतिध्वनित किया जाता है (हरि: विष्णु का एक विशेषण; वासर: ब्रह्मांडीय घंटा)। एकादशी तिथि के दौरान, पवित्र हरि वासर प्रकट होता है, जो भगवान विष्णु की पूजा के लिए समर्पित है।
व्रत तोड़ने का सबसे पसंदीदा समय प्रातःकाल है। मध्याह्न के दौरान व्रत तोड़ने से बचना चाहिए। यदि किसी कारणवश कोई व्यक्ति प्रातःकाल में व्रत नहीं खोल पाता है तो उसे मध्याह्न के बाद व्रत करना चाहिए।
कभी-कभी लगातार दो दिनों तक एकादशी व्रत रखने का सुझाव दिया जाता है। यह सलाह दी जाती है कि समर्था को परिवार सहित केवल पहले दिन उपवास करना चाहिए। जब स्मार्थ के लिए वैकल्पिक एकादशियों के उपवास का सुझाव दिया जाता है तो यह वैष्णव एकादशियों के उपवास के दिन के साथ मेल खाता है।
भगवान विष्णु के प्रेम और स्नेह की तलाश करने वाले कट्टर भक्तों को दोनों दिन एकादशियों का उपवास करने का सुझाव दिया जाता है |
मोक्षदा एकादशी व्रत कथा :
प्राचीन गोकुल नगर में धर्मात्मा और भक्त वैखानस नाम का राजा रहता था । उसने रात्रि में स्वप्न देखा की उसके पूज्य पिता नरक भोग रहे है । प्रातः काल उसने ज्योतिषी वेद पाठी ब्राह्मणो से पूछा – ” मेरे पिता का उद्धार कैसे होगा ? ” ब्राह्मण बोले – ” यहां समीप ही पर्वत ऋषि का आश्रम है । उनकी शरणागति से आपके पिता शीघ्र ही स्वर्ग को चले जाएंगे । ”
राजा पर्वत ऋषि की शरण में गया और दंडवत करके कहने लगा – ” मुझे रात्रि को सपने में मेरे पिता के दर्शन हुए । वह बेचारे यमदूतों के हाथों से दंड पा रहे थे । अतः आप अपने योग बल से बताइए कि उनकी मुक्ति किस साधन से शीघ्र होगी ? ” मुनि ने विचार करके कहा – ” धर्म कर्म सब देरी से फल देने वाले हैं ।
शीघ्र वरदाता तो केवल शंकर जी प्रसिद्ध है । परंतु उनका प्रसन्न करना भी कोई आसान नहीं है । देर अवश्य लग जाएगी और तेरे पिता की इतने तक मरम्मत हो जाएगी । इसलिए सबसे सुगम और शीघ्र फल दाता मोक्षदा एकादशी का व्रत है । उसे विधिपूर्वक परिवार सहित करके पिता को संकल्प कर दो । निश्चय ही उनकी मुक्ति होगी । ”
राजा ने कुटुंब सहित मोक्षदा एकादशी का व्रत करके फल पिता को अर्पण कर दिया । इसके प्रभाव से वह स्वर्ग को चले गए और जाते हुए पुत्र से बोले – ” मैं परमधाम जा रहा हूं । ”
श्रद्धा भक्ति से जो मोक्षदा एकादशी का माहात्म्य सुनता है उसे 10 यज्ञ का फल मिलता है ।
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