कावड़ यात्रा 2025 : This Sawan let’s surrender ourself to Superior Lord Shiv !

ॐ नमः शिवाय ।।
शिव कावड़ महिमा

कावड़ यात्रा चढ़ाने का कारण :

इस विषय पर पौराणिक कथा इस प्रकार है :

समुद्र मंथन के समय सबसे पहले हलाहल विष समुद्र से प्रकट हुआ और उस विष की भयंकर गर्मी से देवता , दैत्य एवं सारा संसार व्याकुल हो गया , तब भगवान विष्णु की प्रेरणा से भगवान शिव जी ने वह हलाहल विष पी लिया , परंतु उन्होंने उस विष को कंठ में ही धारण किया , जिसके कारण उनका कंठ नीला हो गया इसलिए वे “नीलकंठ” कहलाए ।

विष की गर्मी का असर होने से वे तीनों लोकों में घूमने लगे और राम-नाम के स्थान पर उनके मुख से बम-बम निकलने लगा । तब देवताओं ने विष की गर्मी को शांत करने के लिए शिवजी के मस्तक पर बहुत सा जल चढ़ाया और कालांतर में गंगा की स्थापना भगवान शिव के मस्तक पर की गई |

इस समय से शिवजी पर जल चढ़ाने की परंपरा चल पड़ी । बाद में भक्तजन भागीरथी नदी का जल कावड़ में भरकर पैदल लाकर भगवान शंकर पर चढ़ाने लगे और यह परंपरा चल पड़ी जो आज तक विराजमान है |

पुराणों में वर्णन आया है कि रावण ने भी हरिद्वार से गंगाजल लाकर भगवान शिव का अभिषेक किया था ।

कावड़ की महिमा : 

भगवान शिव पद-यात्रा द्वारा कावड़ में लाये गंगाजल से अति प्रसन्न होते हैं । कलयुग में जहां लाखों लोग 1 किलोमीटर दैनिक दिनचर्या में पैदल नहीं चलते , वे सब सावन व फाल्गुन के महीने में 100 किलोमीटर से लेकर 600 किलोमीटर तक का कठिन रास्ता पैदल चलकर आते हैं और भगवान भोलेनाथ पर गंगाजल से अभिषेक करते हैं ।

पैदल यात्रा (कावड़ यात्रा )करते समय पूरे रास्ते बोल बम बोल बम का उच्चारण करते चलते हैं तथा ” ॐ नमः शिवाय “ का जाप करते हैं ।
भगवान शिव अपने भक्तों की कामना शीघ्र पूरी करते हैं इसलिए वह भक्त वत्सल कहलाते हैं । भक्तों की श्रद्धा और निष्ठा दर्शनीय होती हैं । भगवान शिव के भक्ति में भक्ति अपने पैरों के छाले तक भूल जाते हैं । भक्त तेज धूप और घनघोर वर्षा में भी नहीं रुकते ।

जब भक्त भोले बाबा के भवन में पहुंचकर गंगाजल से भोलेनाथ का अभिषेक करते हैं तो उनकी सारी पीड़ा और थकान दूर हो जाती है और वह खुशी से झूम उठते है ।

कावड़ यात्रा 2025 :

आईये जानते है कावड़ यात्रा कहा से शुरू होती है ?

लाखों कावड़ के गोमुख गंगा जी का उद्गम स्थल व हरिद्वार की हर की पौड़ी से कावड़ में गंगाजल भरकर पदयात्रा करते हुए अपने-अपने राज्यों में जाते हैं और गंगाजल से शिवजी का जल अभिषेक करते हैं । यह जल सावन की ” शिवरात्रि ” तक चढ़ता है |
इसके अलावा अपने-अपने नगरों में आकर कावड़िए स्थानीय शिवालियों में पूजा करते हैं ।

कावड़ यात्रा

आईये जानते है कावड़ यात्रा की तयारी कैसे करें ?

मार्ग में कावड़ पूजन विधि:

  • प्रातः काल कावड़ लेकर चलने से पहले एवं साइन को विश्राम देने पर दोनों समय कावड़ की पूजा करनी चाहिए ।
  • श्री गणेश वंदना , श्री गंगा जी की आरती , श्री शंकर भगवान जी की आरती , हनुमान जी की आरती एवं क्षमा प्रार्थना करते हैं ।

कावड़ यात्रा में आवश्यक सामान :

  • कावड़ श्रद्धा से सजी हुई वह दो जल पात्र |
  • भगवा रंग के कुछ जोड़ी कपड़े |
  • दूध की एक बाल्टी ( 1 लीटर वाली )
  • प्लास्टिक की थैलिया |
  • 3 मीटर लंबी चटाई |
  • एक थैला या बैग लटकाने का |
  • एक बैटरी |
  • चादर , रेजगारी इच्छा अनुसार , और कुछ जरूरी दवाइयां ।

कावड़ यात्रा पूजा का सामान :

  • प्रसाद यथाशक्ति मिश्री , बादाम या बताशे इत्यादि
  • धूप – दीप ,कपूर
  • कलश रखने के लिए छोटे लाल कपड़े एवं आरती की पुस्तक

कावड़ यात्रा संबंधी कुछ नियम

  • ब्रह्मचार्य का पालन करें । जमीन अथवा तख्त पर सोना चाहिए ।
  • रास्ते में भगवान शिव का नाम उच्चारण करें एवं सांय को कीर्तन करें ।
  • साथी कांवड़ियों की सहायता करें ।
  • प्रातः काल एवं सांय को कावड़ की आरती करें ।
  • कावड़ हमेशा ऊंचे एवं पवित्र स्थान पर रखें ।
  • भगवान शिव (बोल बम ) का नाम लेते हुए हमेशा कावड़ दाहिने कंधे पर ही रखें ।
  • दाहिने कंधे से बाएं कंधे पर कावड़ ले जाते समय कावड़ पीछे ले जाएं । सर के ऊपर से नहीं जानी चाहिए ।
  • भोजन , नींद एवं शौच के बाद स्नान अवश्य करें ।
  • कावड़ शुद्ध सच्चे मन एवं लवण से लानी चाहिए । इसमें किसी प्रकार की प्रतियोगिता नहीं होनी चाहिए ।
  • कावड़ यात्रा में तेल , साबुन , कंघा इस्तेमाल न करें ।
  • चारपाई पर न बैठ न सोए ।
  • चमड़े का सामान साथ ना रखें ।
  • मदिरापान व नशा ना करें ।
  • किसी की निंदा या आलोचना न करें ।
  • बम बम भोले !

आईये जानते है कावड़ यात्रा कितने दिनों की होती है ?

श्रावण मास हिन्दू धर्म में बहुत ही पवित्र महीना माना जाता है | यह महीना भगवान शंकर को समर्पित होता है | सावन मास शुरू होने से
लेकर सावन शिवरात्रि तक भक्त जल भरने कावड़ यात्रा पर निकल पड़ते है | इसलिए दिनों का हिसाब लगाए तो श्रावण मास की शिवरात्रि तक 12 दिनों तक कावड़ यात्रा चलती है |

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