श्री कृष्ण जन्माष्टमी :
भाद्रपद महीने की अष्टमी तिथि को “जन्माष्टमी” उत्स्व मनाया जाता है | इसी तिथि को श्री कृष्ण का मातगुरा नगरी में कंस के कारगर में जन्म हुआ था | इस दिन कृष्ण जन्मोत्स्व के उपलक्ष में मंदिरों में जगह – जगह कीर्तन तथा झांकिया सजाई जाती है |
बारह बजे रात्रि तक व्रत रह कर भगवान का प्रसाद लिया जाता है | दूसरे दिन प्रातः ही इसी उपलक्ष में महोत्स्व भी मनाया जाता है | भगवान के ऊपर हल्दी , दही , घी , तेल आदि छिड़क कर आनंद से पालने में झुलाया जाता है |
रात को 12:00 बजे शंख तथा घंटे की आवाज से श्रीकृष्ण के जन्म की खबर चारों दिशाओं में गूंज उठती है । भगवान श्री कृष्ण की आरती उतारी जाती है और प्रसाद वितरण किया जाता है । प्रसाद ग्रहण कर व्रत को खोला जाता है ।
जन्माष्टमी के दिन उपवास करने से मनुष्य सात जन्मों के पापों से छूट जाता है , तथा धर्मशास्त्रों में पलंग पर देवकी सहित श्री कृष्ण पूजन का विधान बताया गया है |
श्री कृष्ण जन्माष्टमी पूजा मुहूर्त :
भगवान कृष्ण की 5252वीं जयंती
15 अगस्त 2025, शुक्रवार को कृष्ण जन्माष्टमी
निशिता पूजा समय – 12:04 पूर्वाह्न से 12:47 पूर्वाह्न, 16 अगस्त
शनिवार, 16 अगस्त 2025 को दही हांडी
धर्मशास्त्र के अनुसार पारण
पारण का समय – रात्रि 09:34 बजे के बाद, 16 अगस्त
पारण के दिन अष्टमी तिथि समाप्त होने का समय – रात्रि 09:34 बजे
भारत में कई स्थानों पर, पारण निशिता यानी हिंदू आधी रात के बाद किया जाता है
मध्य रात्रि क्षण – 12:26 पूर्वाह्न, 16 अगस्त
चंद्रोदय क्षण – रात्रि 10:46 बजे कृष्ण दशमी
अष्टमी तिथि प्रारंभ – 15 अगस्त 2025 को रात 11:49 बजे से
अष्टमी तिथि समाप्त – 16 अगस्त 2025 को रात्रि 09:34 बजे
हालाँकि, जन्माष्टमी के दिन को तय करने के लिए नियम ज़्यादा जटिल हैं। निशिता काल या हिंदू मध्यरात्रि को प्राथमिकता दी जाती है। प्राथमिकता उस दिन को दी जाती है, या तो सप्तमी तिथि या अष्टमी तिथि, जब निशिता के दौरान अष्टमी तिथि प्रबल होती है और रोहिणी नक्षत्र को शामिल करने के लिए आगे के नियम जोड़े जाते हैं। अंतिम विचार उस दिन को दिया जाता है जिसमें निशिता समय के दौरान अष्टमी तिथि और रोहिणी नक्षत्र का सबसे शुभ संयोजन होता है। स्मार्त नियमों के अनुसार जन्माष्टमी का दिन हमेशा हिंदू कैलेंडर पर सप्तमी या अष्टमी तिथि को पड़ता है।
वैष्णव संप्रदाय के अनुयायी अष्टमी तिथि और रोहिणी नक्षत्र को प्राथमिकता देते हैं।
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी कथा :
द्वापर युग में पृथ्वी पर राक्षसों के अत्याचार बढ़ने लगे । पृथ्वी गाय का रूप धारण कर अपनी व्यथा सुनाने के लिए तथा अपने उद्धार के लिए ब्रह्मा जी के पास गई । ब्रह्मा जी सब देवताओं को साथ लेकर पृथ्वी को विष्णु के पास क्षीर सागर में ले गए । उसे समय भगवान विष्णु अनंत शैय्या पर शयन कर रहे थे । स्तुति करने पर भगवान की निद्रा भंग हो गई ।
भगवान ने ब्रह्मा एवं सब देवताओं को देखकर उनके आने का कारण पूछा तो पृथ्वी बोली -” भगवन ! मैं पापों के बोझ से दबी जा रही हूं मेरा उद्धार कीजिए । ” यह सुनकर विष्णु जी बोले -” मैं ब्रज मंडल में वासुदेव की पत्नी देवकी के गर्भ से जन्म लूंगा । तुम सब देवता गणराजभूमि में जाकर यादव वंश में अपना शरीर धारण करो । ”
इतना कहकर भगवान अंतर्धान हो गए इसके पश्चात देवता ब्रजमंडल में आकर यदुकुल में नंद-यशोदा तथा गोपियों के रूप में पैदा हुए ।
द्वापर युग के अंत में मथुरा में उग्रसेन राजा राज्य करते थे । उग्रसेन के पुत्र का नाम कंस था । कंस ने अपने पिता को बलपूर्वक सिंहासन से उतार कर जेल में डाल दिया और स्वयं राजा बन गया ।
कंस की बहन देवकी का विवाह यादव कुल में वासुदेव के साथ निश्चित हो गया । जब कंस देवकी को विदा करने के लिए रथ के साथ जा रहा था तो आकाशवाणी हुई कि हे कंस ! जिस देश की को तू बड़े प्रेम के साथ विदा कर रहा है उसका आठवां पुत्र तेरा संहार करेगा ।
आकाशवाणी की बात सुनकर कंस क्रोध से भरकर देवकी को मारने को तैयार हो गया । उसने सोचा ना देवकी रहेगी ना उसका कोई पुत्र होगा ।
वासुदेव जी ने कंस को समझाया कि तुम्हें देवकी से तो कोई भय नहीं है । अच्छी की आठवीं संतान से तुम्हें भय है । इसलिए मैं इसकी आठवीं संतान को तुम्हें सौंप दूंगा । तुम्हारी समझ में जो आए उसके साथ वैसा ही व्यवहार करना । कंस ने वासुदेव जी की बात स्वीकार कर ली और वासुदेव और देवकी को कारागार में बंद कर दिया ।
तत्काल नारद जी वहां आ पहुंचे और कंस से बोले कि यह कैसे पता चलेगा कि आठवां गर्भ कौन सा होगा ? गिनती प्रथम से या अंतिम गर्व से शुरू होगी । कंस ने नारद जी के परामर्श पर देवकी के गर्भ से उत्पन्न होने वाले समस्त बालकों को करने का निश्चय कर लिया । इस प्रकार एक-एक करके कंस ने देखी के साथ बालकों को निर्दयता पूर्वक मार डाला ।
भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को रोहिणी नक्षत्र में श्री कृष्ण का जन्म हुआ । उनके जन्म लेते ही जेल की कोठरी में प्रकाश फैल गया । वसुदेव-देवकी के सामने शंख , चक्र , गदा एवं चतुर्भुज भगवान ने अपना रूप प्रकट कर कहा – ” अब मैं बालक का रूप धारण करता हूं । तुम मुझे तत्काल गोकुल में नंद के यहां पहुंचा दो और उनकी अभी-अभी जनमी कन्या को लाकर कंस को सौंप दो । ”
तत्काल वासुदेव जी की हथकड़ियां खुल गई । दरवाजे अपने आप खुल गए । पहरेदार सो गए । वासुदेव श्री कृष्ण को सूप में रखकर गोकुल को चल दिए । रास्ते में यमुना श्री कृष्ण के चरणों को स्पष्ट करने के लिए बढ़ने लगी । भगवान ने अपने पैर लटका दिए । चरण छूने के बाद यमुना घट गई ।
वासुदेव यमुना को पार कर गोकुल में नंद के यहां गए । बालक कृष्ण को यशोदा की बगल में सलकर कन्या को लेकर वापस कंस के कारागार में आ गए ।
जेल के दरवाजे पूर्ववत्त बंद हो गए । वासुदेव जी के हाथों में हथकड़ियां पड़ गई , पहरेदार जाग गए । कन्या के रोने पर कंस को खबर दी गई । कंस ने कारागार में आकर कन्या को लेकर पत्थर पर पटक कर मारना चाहा परंतु वह कंस के हाथ से छूटकर आकाश में उड़ गई और देवी का रूप धारण करके बोली – ” हे कंस ! मुझे मरने से क्या लाभ है ? तेरा शत्रु तो गोकुल में पहुंच चुका है । ”
कंस ने श्री कृष्ण को करने के लिए अनेक दैत्य भेजें । श्री कृष्ण ने अपनी अलौकिक माया से सारे दैत्यों को मार डाला । बड़े होने पर कंस को मार कर उग्रसेन को राजगद्दी पर बैठाया ।
श्री कृष्ण की पुण्य जन्म तिथि को तभी से सारे देश में बड़े हर्षोल्लास से मनाया जाता है ।
Shri Krishna Janamashtami Jhanki Ideas by Kids
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